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________________ प्राण शक्ति : स्वरूप, साधना, विकास और उपलब्धियाँ ३२६ इस प्राणमय शरीर में अवस्थित कुण्डलिनी शक्ति को जागृत कर चक्रों अथवा कमलों को अनुप्राणित करने से योगी को विशिष्ट लब्धियाँ और चमत्कारी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। (१) मूलाधार को अनुप्राणित करने से अध्यात्म विद्या में प्रवृत्ति और नोरोगता; (२) स्वाधिष्ठान से वासना क्षय और ओजस्विता; (३) मणिपूर से आरोग्य, आत्म-साक्षात्कार, ऐश्वर्य; (४) अनाहत से यौगिक उपलब्धियाँ एवं आत्मस्थता, (५) विशुद्धि चक्र से कामना-विजय, (६) आज्ञाचक्र से अन्तआन और वासिद्धि, (७) मनःचक्र से अतीन्द्रिय ज्ञान तथा इन्द्रिय और मनोविजय; (८) सोमचक्र से सर्वसिद्धि, आनन्द की प्राप्ति और आत्मा के तेजोमय स्वरूप का अनुभव; (8) सहस्रार से मुक्ति । अर्थात् इन चक्रों (कमलों) के उन्मुकुलित होने पर साधक को ये विशिष्ट उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं। वस्तुतः प्राणमय शरीर आत्मा के साथ लगा रहने वाला सूक्ष्म (तेजस्) शरीर है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार सूक्ष्म शरीर की रचना न्यूट्रिनो नामक कणों से होती है। न्यूट्रिनो कण अदृश्य (साधारण चर्मचक्षुओं से अदृश्य), आवेश रहित और इतने हल्के होते हैं कि इनमें मात्रा और भार लगभग नहीं के बराबर होता है । ये स्थिर नहीं रह सकते और प्रकाश की तीव्र गति से सदा चलते रहते हैं। वैज्ञानिकों ने प्रयोग करके देखा है कि यदि न्यूट्रिनो कणों को किसी दीवार की ओर छोड़ा जाय तो वे दीवार को पार करके अन्तरिक्ष में विलीन हो जाते हैं । कोई भी भौतिक वस्तु इन्हें रोक नहीं सकती । इन न्यूट्रिनो कणों को पुनः भौतिक वस्तु के रूप में भी परिवर्तित किया जा सकता है ।। परामनोविज्ञान के अनुसार यह सूक्ष्म शरीर किसी भी स्थान पर, किसी 'भी दूरी और परिमाण में अपने को प्रकट और लय कर सकता है। -रहस्यों के घेरे में, पृष्ठ ३७ इस वैज्ञानिक विवरण से स्पष्ट है कि यह प्राणमय अथवा सूक्ष्म (तेजस्) शरीर पौद्गलिक है और इसी कारण यह वैज्ञानिक यन्त्रों, ऑरोस्पेक (Aurospec) आदि से भी देखा जा सकता है । -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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