SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन योग : सिद्धान्त और साधना इसके लिए विशिष्ट साधनों की आवश्यकता होती है । ये साधन आध्यात्मिक भी हो सकते हैं और भौतिक भी । योगी आध्यात्मिक उन्नति, हठ योग की क्रियाओं तथा भावनायोग द्वारा अपने अन्तर् में बीज रूप में उपस्थित दिव्य दृष्टि को विकसित करता है और वैज्ञानिक बाह्य साधनों द्वारा भी प्रकाशमय प्राणमय शरीर को देख लेता है । ' ३२८. १ (क) डॉ० क्लिनर ने प्राणमय कोष (Etheric boby) को देखने के लिए ऑरोस्पेक (Aurospec) नाम का चश्मा (Goggles ) खोज निकाला है । इस चश्मे से दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है अर्थात् इस चश्मे द्वारा मानव किसी भी दूसरे व्यक्ति के प्राणमय शरीर को देख सकता है । परन्तु यह जो प्राणमय शरीर प्रकाशरूप दिखाई देता है सो प्रकाशात्मक कुण्डलिनी शक्ति के सारे शरीर में व्याप्त होने के कारण से दिखाई देता है । मनोमय शरीर में ऊर्मियों के उत्पन्न होने पर अन्नमय शरीर में उनकी क्रिया होने का साधन प्राणमय शरीर ही है । अर्थात् प्राणमय शरीर का प्रकाश रूप अपने अनुभव से तथा डॉ० क्लिनर के ऑरोस्पेक से प्रत्यक्ष होता है । - श्री कुण्डलिनी योग-शक्ति-ले० पं० श्री त्र्यम्बक भास्कर शास्त्री खरे ( परमार्थ पथ, पृ० ३९८ ) (ख) ऐसी दिव्य दृष्टि प्राप्त करने की दूसरी बाह्य विधि बाहरी साधनों से मस्तिष्क के विशिष्ट अंग को उत्तेजित करना है । यह तिब्बत के लामाओं में प्रचलित है । वे लोग विशेष प्रकार की जड़ी-बूटियों तथा मंत्रों से अभिमंत्रित करने के बाद उस अभिमन्त्रित आरी जैसे दाँतेदार औजार को गर्म करते हैं और उस तपती हुई आरी से ललाट की हड्डी को काटते हैं, फिर उसके द्वारा हुए छेद में एक जड़ी-बूटियों तथा मंत्रों से पवित्र की हुई शलाका को डाल देते हैं । वह शलाका इतनी कुशलता से डाली जाती है कि मस्तिष्क के एक विशेष भाग टकराकर उसे उत्तेजित कर देती है । इस प्रकार मनुष्य की तीसरी आंख बन जाती है और उसे दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है, वह दूसरों के प्राणमय शरीर (Etheric or Electric body) को देख सकता है । ऐसी घटना लोबसंग नाम के लामा के जीवन में घटी है। उसने इसका पूरा ब्योरा The Third Eye 'तीसरी आँख' नामक पुस्तक में दिया है । - पूर्ण विवरण के लिए द्रष्टव्य -- तीसरी आँख (रहस्यों के घेरे में, Jain Education International For Private & Personal Use Only पृ० ८ ६) www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy