SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राण-शक्ति : स्वरूप, साधना, विकास और उपलब्धियाँ ३२.५ नाड़ी में स्थित हैं। योगी प्राणवायु द्वारा इसी नाड़ी को शक्तिमान्, स्फूर्तिवान् बनाता है और अनेक चमत्कारी शक्तियाँ प्राप्त करता है। इस स्थिति में मस्तिष्क एरियल का काम करता है, वही स्थूल और सूक्ष्म भौतिक तरंगों को पकड़ता है। इवनि-तरंगों को, विचार-तरंगों को, विद्यत तरंगों को, रेडियोधर्मी तरंगों को-सभी प्रकार की तरंगों को पकड़ता है और साधक भूत-भविष्य का जानकार, चुम्बकीय शक्ति वाला तथा अन्तर्दृष्टिसम्पन्न एवं अनेक प्रकार की शक्तियों का स्वामी बन जाता है। __ मेरुदण्ड के निचले अन्तिम भाग में, सुषुम्ना के अन्दर रहने वाली ब्रह्म नाड़ी एक काले वर्ण के षट्कोण स्कन्ध (चक्रजाल) से बँधकर लिपट जाती है। पुराणों में इसी को कूर्म कहा गया है और यौगिक ग्रंथों में कुण्डलिनी । यह गुन्थन कुण्डलाकार है, इसीलिये इसका नाम कुण्डलिनी पड़ा। कुण्डलिनी शक्ति का ऊर्ध्वारोहण और चक्रभेदन योग और विशेष रूप से हठयोग में कुण्डलिनी की महिमा का बहुत गुणगान किया गया है। श्वेताश्वतर उपनिषद् में इसे 'नाचिकेत' अग्नि कहा गया है और बताया गया है कि जो साधक 'त्रि-नाचिकेत' बन जाते हैं, वे जन्म और मृत्यु से पार पहुँच जाते हैं–तरति जन्ममृत्यू उनका शरीर योगाग्निमय हो जाता है और वे जरा, व्याधि तथा मृत्यु से पार हो जाते हैं न तस्य रोगो न जरा न मृत्युः प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम् । -श्वेताश्वतर उपनिषद् चैनिक योग दीपिका में इसे आत्मिक अग्नि (spirit fire) कहा गया है Only after the completed work of a hundred days will the Light be real, there will it become Spirit fire. The heart is the fire; the fire is the Elixir. -I'lohin योगविद्या के पाश्चात्य विद्वान इसे सर्पवत्वलयान्विता अग्नि (serpent fire) कहते हैं और मैडम ब्लैवेटस्की (Madame Blavetsky-ये थियोसोफीकल सोसाइटी Theosophical Society की जन्मदाता थीं) इसे विश्वव्यापी विद्युत शक्ति (Cosmic Eletricity) कहती थीं। इसकी गति के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy