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३२६ जन योग : सिद्धान्त और साधना विषय में बताते हुए उन्होंने कहा है कि प्रकाश १,८५,००० मील प्रति सैकिण्ड की गति से चलता है, जबकि कुण्डलिनी शक्ति की गति ३,४५,००० मील प्रति सैकिण्ड है।
(Light travels at the rate of 1,85,000 miles per second, Kundalini at 3,45,000 miles a second.)1
यह कुण्डलिनी शक्ति साधारणतया मानव-शरीर में सोयी पड़ी रहती है, सुषुप्ति अवस्था में रहती है। किन्तु जब योगी प्राणायाम द्वारा प्राणशक्ति को इसमें संचारित करता है, सही शब्दों में ठोकर देता है प्राणशक्ति की; प्राणशक्ति को उस पर केन्द्रित करके ऊपर की ओर धक्का लगाता है, इसे ऊपर की ओर चढ़ने को प्रेरित करता है तब इसकी सुषप्ति दशा टूटती है
और यह ऊर्वारोहण करती है; उर्ध्वारोहण के क्रम में यह चक्रों का भेदन करती है।
चक्र के लिए योग ग्रंथों में 'कमल' शब्द दिया गया है। यह शब्द अधिक उपयुक्त है । जिस तरह कमल का फूल खिलता और बन्द होता है, उसका
१ मैडम ब्लेवेट्सको के कथन में कुछ अपूर्णता है। वास्तव में, प्रकाश की गति
१८६,००० मील प्रति सैकिण्ड है, विद्युत की गति २,८८,००० मील प्रति सैकिण्ड और विचारों की गति २२,६५,१२० मील प्रति सैकिण्ड है। -सम्पादक चक्रों की संख्या के बारे में कई विचारधाराएं प्राचीन मनीषियों की प्राप्त होती हैं । साधारणतया चक्र सात माने जाते हैं-(१) मूलाधार-सुषुम्ना के अन्तिम निचले सिरे में, (२) स्वाधिष्ठान
पणिपूर यक -मूलाधार से चार अंगुल ऊपर पेडू में (३) मणिपूर-नाभि स्थान में, (४) अनाहत हृदय में (५) विशुद्धि-कंठ में, (६) आज्ञा-भ्रू मध्य में, (७) " सहस्रार-ब्रह्मरंध्र में।
(देखिए चित्र) कुछ आचार्यों ने आज्ञा और सहस्रार चक्र के मध्य में दो चक्रों की अवस्थिति और मानी है-(१) मनःचक्र और (२) सोमचक्र । मनःचक्र का
स्वाधिष्ठान चक
क
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