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________________ ३२४ जैन योग : सिद्धान्त और साधना के विभिन्न अवयवों में पहुंचकर विभिन्न प्रकार के शारीरिक कार्य सम्पन्न करती हैं। किन्तु योगविद्या के अनुसार इसमें तीन प्रमुख नाड़ियाँ हैं- ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। ये नाड़ियाँ सूक्ष्म औदारिक पृद्गलों से निर्मित हैं और सूक्ष्म औदारिक शरीर से सम्बन्धित हैं, इसलिए इन्हें चर्मचक्षुओं से नहीं देखा जा सकता; मेरुदण्ड को चीरने पर ये नाड़ियाँ दिखाई देतीं भी नहीं। इन तीनों नाड़ियों की तुलना विद्युत प्रवाह से की जा सकती है। विद्य त की दो धाराएँ होती हैं --एक, धन (positive) विद्य त और दूसरी ऋण (negative) विद्य त । दोनों प्रकार की धाराएँ अलग-अलग तारों (wires) के माध्यम से चलती हैं, उन तारों में प्रवाहित होती हैं। ये धाराएँ अलग-अलग चाहे जितने समय तक और चाहे जितनी दूर तक चली जायें, कोई शक्ति उत्पन्न नहीं होती, न बल्ब जलते हैं, न पंखे चलते हैं, और जैसे ही ये धाराएँ मिल जाती है इनका circuit complete हो जाता है, शक्ति का स्रोत उमड़ पड़ता है, नियोन लाइट जल उठती हैं, वातावरण प्रकाश में नहा जाता है, पंखे घूमने लगते हैं, मोटरें गतिमान हो जाती हैं, मिलों और कारखानों की मशीने धड़धड़ाने लगती हैं, हजारों टनों भरी पत्थरों और लोहे के सामानों को क्रन इधर से उधर उठाकर रख देती है, रेडियो पर गाने आने लगते हैं और टेलीविजन पर दूर-दूर के दृश्य दिखाई देने लगते हैं। विद्युत् शक्ति से असम्भव लगने वाले कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। ___ यही स्थिति इन नाड़ियों के बारे में है। ईड़ा (चन्द्रनाड़ी) को ऋण विद्य त धारा (Negative) और पिंगला (सूर्य नाड़ी) को धन विद्य त धारा (Positive) कह सकते हैं तथा जहाँ ये दोनों मिलती हैं, वहीं सुषुम्ना नाड़ी है । जब ये मिल जाती हैं तभी यौगिक शक्तियों का स्रोत बह निकलता है। इस प्रकार सुषुम्ना नाड़ी एक तीसरी शक्ति है। योग की और सूक्ष्म गहराई में जाने पर, सुषुम्ना के अन्दर एक और त्रिवर्ग है जो पहले त्रिवर्ग से भी सूक्ष्म है। वहाँ भी तीन नाड़ियाँ हैं-(१) वज्रा (२) चित्रणी और (३) ब्रह्म नाड़ी। बस, ब्रह्मनाड़ी ही यौगिक शक्तियों का मूल और केन्द्र है । यही नाड़ी मस्तिष्क में, शिराओं आदि के रूप में जाकर हजारों भागों में फैल जाती है। यह नाड़ी (ब्रह्म नाड़ी) तैजस् परमाणुओं से निर्मित और तेजस् शरीर में अवस्थित है। योगशास्त्रों में कहे गये सप्त कमल (अथवा चक्र) भी इसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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