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तपोयोग साधना-३
१२ ध्यान योग-साधना
गणधर गौतम ने भगवान महावीर से पूछा
भंते ! एक आलंबन पर मन को सन्निवेश (स्थिर) करने से जीव को क्या लाभ होता है ?
भगवान ने बताया-गौतम ! एक आलंबन पर मन को सन्निवेश करने से चित्त का निरोध होता है ।'
चित्तनिरोध का आशय है-मन की चंचलता का निग्रह, मन की स्थिरता अथवा एक विषय पर केन्द्रीकरण ।
मन की दो अवस्थाएँ हैं-चंचल और स्थिर । इनमें से स्थिर अवस्था ध्यान है।
ध्यान का लक्षण व्याकरणशास्त्र की दृष्टि से ध्यान शब्द की निष्पत्ति 'ध्य चिन्ता याम्'-इस धातु से हुई है । व्युत्पत्ति की दृष्टि से 'ध्यान' का अर्थ चिन्तन है।
किन्तु योगमार्ग की अपेक्षा से 'ध्यान' का आशय कुछ भिन्न है । यहाँ चित्त को किसी एक आलम्बन पर स्थिर करनी 'ध्यान' माना गया है।' उमास्वाति ने एकाग्रचिन्ता, तथा शरीर, वाणी और मन के निरोध को ध्यान कहा है।
-ध्यानशतक २
१ उत्तराध्ययन २६/२६ २ जं थिरमज्झवसाणं झाणं जं चलं तयं चित्तं । ३ आवश्यकनियुक्ति, गाथा १४६३ ४ तत्त्वार्थ सूत्र ६/२७
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