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बाह्य तप : बाह्य आवरण-शुद्धि साधना
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(२०) मन के संकल्प-विकल्प और आवेग-संवेगों का उपशमन होता है।
इस प्रकार तपोयोगी साधक बाह्य तपों की आराधना-साधना से बाह्य शुद्धि करके आन्तरिक शुद्धि की ओर-आभ्यन्तर तपों की ओर कदम बढ़ाता है । दूसरे शब्दों में, बाह्य तप, आभ्यन्तर तपों की आधार-भूमि प्रस्तुत करते हैं। तपोमार्ग पर गति करने वाले साधक के लिए बाह्य तपों की साधना आवश्यक है । बाह्य तपों से बाह्य आवरण-शुद्धि के बाद ही साधक आत्मशुद्धि के सोपान पर बढ़ पाता है।
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