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________________ बाह्य तप : बाह्य आवरण-शुद्धि साधना २४१ (३) मिनाचरी तपः वृत्ति-संकुचन की साधना श्रमण के लिए भिक्षा एक तप है और सामान्य भिक्षक के लिए अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन । भिक्षा और भिक्षाचरी तप में महान अन्तर है। सामान्य भिक्षक दोनवृत्ति से भिक्षा माँगता है, न मिलने पर रुष्ट होता है, दाता को कटुवचन भी कह देता है, चित्त में खेद करता है और यदि अच्छे पदार्थ मिल जायें तो हर्षित होता है, दाता की प्रशंसा करता है, उसको दुआएँ देता है। उसकी भिक्षा पौरुषघ्नी (पुरुषार्थ का नाश करके अकर्मण्य और आलसी बनाने वाली) होती है। जबकि श्रमण अदीनभाव से अपनी मर्यादा और अभिग्रह के अनुकूल भिक्षा ग्रहण करता है, अस्वादिष्ट पदार्थ मिलने पर रुष्ट नहीं होता है और अच्छे पदार्थ मिलने पर तुष्ट नहीं होता, न मिलने पर खेद नहीं करता और मिल जाने पर हर्षित नहीं होता-दोनों ही स्थितियों में समभाव रखता है। इसीलिए श्रमण का भिक्षा ग्रहण करना तप है और उसकी भिक्षा 'सर्वसम्पत्करी' है । वह दाता के लिए भी कल्याणकारी है और श्रमण भी अपने शरीर को भोजन के रूप में भाड़ा देकर अपना कल्याण करता है। श्रमण की भिक्षाचर्या को आचारांग,' उत्तराध्ययन, आदि आगमों में 'गोयरग्ग' (गोचराग्र-गोचरी) भी कहा गया है। गोचरी का अभिप्राय है कि जिस प्रकार गो (गाय) घास को जड़ से नहीं उखाड़ती, एक ही स्थान को घास से बिल्लकुल साफ नहीं करती, अपितु चरती हई खेत के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँच जाती है, और इस प्रकार अपनी क्षधा-तृप्ति कर लेती है उसी प्रकार श्रमण भी अनेक घरों से थोड़ी-थोड़ी भिक्षा ग्रहण करता है, किसी एक गृहस्थ पर बोझ नहीं बनता। दशवकालिक सूत्र में भिक्षाचरी को माधुकरी वृत्ति भी कहा गया है । उसका अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार मधुकर (भौंरा) अनेक फूलों से थोड़ाथोड़ा रस लेता है, उसी प्रकार श्रमण भी थोड़ी-थोड़ी भिक्षा अनेक घरों से ग्रहण करता है तथा जिस प्रकार भौंरे के रस ग्रहण करने से पुष्प और भी महकते हैं क्योंकि भ्रमर पुष्प के अतिरिक्त रस को ही चूसता है) उसी प्रकार १ आचारांग २/१ २ उत्तराध्ययन ३०२५ ३ दशवकालिक सूत्र १/५-महुकार समा बुद्धा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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