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________________ २४० जैन योग : सिदान्त और साधना करके उसी समय भिक्षा ग्रहण करना। (४) भाव ऊनोदरी-अभिग्रह लेकर भिक्षा के लिए जाना (५) पर्याय ऊनोदरी-उक्त चारों प्रकार की ऊनोदरी को क्रिया रूप में परिणत करना। उत्तराध्ययन में वर्णित ऊनोदरी के ये पाँचों भेद श्रमण की अपेक्षा से हैं। वैसे तपोयोग की अपेक्षा से ऊनोदरी के प्रमुख भेद दो ही हैं--(१) द्रव्य ऊनोदरी और (२) भाव ऊनोदरी। द्रव्य ऊनोदरी में तपोयोगी साधक आहार-वस्त्र-उपकरण (सामग्री) आदि को कम करता है और भाव ऊनोदरी में कषाय, राग-द्वेष, योगों की चपलता आदि को कम करता है, वचन की भी ऊनोदरी करता है यानी कम बोलता है। अल्पभोजन की तरह अल्पभाषण भी ऊनोदरी तप है। तयोयोग की दृष्टि से ऊनोदरी, अनशन की अपेक्षा कठिन तप है। इसे वही साधक कर सकता है जिसका अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण हो। भूखा रह जाना तो सरल है; किन्तु जिस समय षटस व्यंजनों का थाल सामने रखा हो, पेट में भूख भी हो, मनुष्य खा भी रहा हो, 'और लीजिए' 'और लीजिए' की मनुहार भी हो रही हो; ऐसी स्थिति में भूख से कम खानाऊनोदरी करना उसी व्यक्ति के लिए संभव है, जिसका अपने मन और इच्छाओं पर नियंत्रण हो । यही स्थिति वस्त्र आदि के बारे में है। कषायों और राग-द्वेष के वेग को कम करना तो और भी कठिन है। अन्दर से क्रोध उबलने को फटा पड़ रहा है, बाहर क्रोध को भड़काने वाले निमित्त भी हों फिर भी उस आवेग को दबाना, कम करना बहुत ही कठिन कार्य है। इससे भी कठिन कार्य है लोभ को कम करना, सोने-चांदी के अम्बार लगे हों, लाभ का अच्छा चांस हो फिर भी अपनी आवश्यकता से कम लेना, कितना कठिन है। - अनशन में तो सिर्फ पेट की भूख पर ही काबू किया जाता है; किन्तु ऊनोदरी में मन के और कषायों के वेग पर भी नियंत्रण का अभ्यास किया जाता है, उन्हें कम किया जाता है। तपोयोगी साधक अपनी साधना के बल पर इस कठिन कार्य को भी सरल बना लेता है और सफलतापूर्वक ऊनोदरी तप की साधना करता है। द्रव्य-भाव ऊनोदरी तप की साधना से तपोयोगी साधक का प्रमाद कम हो जाता है, उसका आलस्य मिट जाता है तथा स्मृति, धृति, बुद्धि, सहिष्णता, धैर्य आदि मानसिक शक्तियां बढ़ती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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