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बाह्य तप : बाह्य आवरण-शुद्धि साधना | २३६
वैसे प्रकीर्णक तप के अन्तर्गत-(१) नवकारसी, (२) पौरसी, (३) पूर्वाद्ध, (४) एकासन (५) एक स्थान (एकल ठाणा), (६) आयंबिल (७) दिवस चरिम (८) रात्रि भोजन त्याग, (8) अभिग्रह, (१०) चतुर्थभक्त उपवास -इन दस तपों की गणना प्रमुख रूप से होती है।
अनशन तप का द्वितीय भेद यावत्कथिक है । इस तप में जीवन भर के लिए आहार का त्याग करके संथारा किया जाता है। इसमें धीरे-धीरे काया को क्षीण किया जाता है और साथ ही साथ कषायों को भी क्षीण किया जाता है । यह अन्तिम समय की साधना है। इसके बाद फिर कोई साधना शेष नहीं रहती।
तपोयोगी साधक अनशन तप के द्वारा शरीर और मन की शुद्धि करता है तथा आहार के विषय में अपनी आसक्ति कम करता है। वह आहार के त्याग के साथ ही साथ अपनी वृत्तियों को अन्तमुखी करता है।
- इस प्रकार अनशन तप तपोयोगी साधक के लिए साधना की आधारभूमि तैयार करता है।
(२) ऊनोदरी तप : इच्छा नियमन साधना ऊनोदरी का अर्थ (ऊन = कम, उदरपेट) भूख से कम खाना होता है। आगम साहित्य में ऊनोदरी के 'अवमोदरिका' एवं 'अवमोदर्य' ये दो नाम और मिलते हैं । शब्दभेद होने पर भी इनके अर्थ में कोई अन्तर नहीं है।
स्थानांग सूत्र में ऊनोदरी तप के तीन प्रकार बताये हैं—(१) उप'करण अवमौदरिका (२) भक्त-पान अवमौदरिका और (३) भाव (कषायत्याग) अवमौदरिका ।
भगवती' में द्रव्य उनोदरी और भाव ऊनोदरी-ये दो भेद किये गये हैं।
. उत्तराध्ययन में ऊनोदरी के पाँच प्रकार बताये गये हैं- (१) द्रव्य ऊनोदरी-आहार की मात्रा भूख से कम लेना, इसी प्रकार वस्त्र आदि भी आवश्यकता से कम लेना । (२) क्षेत्र ऊनोदरी-भिक्षा के लिए स्थान निश्चित करके वहीं से भिक्षा लेना (३) काल ऊनोवरी-भिक्षा के लिए समय निश्चित
१ स्थानांग ३/३/१८२ - २ ओमोयरिया दुविहा-दवमोयरिया य भावमोयरिया । .:३ उत्तराध्ययन ३०/१०-११
-भगवती सूत्र
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