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६ भावनायोग साधना
अनुप्रेक्षा का आशय
एक शब्द है प्रेक्षा; उसका आशय है देखना, गहराई से देखना, तटस्थतापूर्वक देखना, सिर्फ देखना, उसमें कोई चिन्तन-मनन न हो, मात्र प्रेक्षा ही हो; और दूसरा शब्द है अनुप्रेक्षा; 'अनु' उपसर्ग लगते ही प्रेक्षा शब्द का आशय बदल गया, अभिप्राय 'परिवर्तित हो गया, उसमें चिन्तन-मनन का समावेश हो गया, इस प्रकार अनुप्रेक्षा शब्द का आशय है-बार-बार देखना, गहराई से देखना, चिन्तन-मननपूर्वक देखना, मनन करना, चिन्तन करना और मन, चित्त तथा चैतन्य को उस विषय में रमाना, उन संस्कारों को दृढ़ीभूत करना।'
अनुप्रेक्षा, सचाई को देखना है, सचाई पर चिन्तन करना है। अपनी जो पूर्वधारणाएँ हैं, उन्हें निकालकर पूर्व-संस्कारों को हटाकर जो सत्य है, यथार्थ है, वास्तविकता है उसका चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है।
अनुप्रेक्षा का अभिप्रेत है-सत्यं प्रति प्रेक्षा, अनुप्रंक्षा। सत्य के प्रति एकनिष्ठ बुद्धि से देखना जनुप्रेक्षा है । अनुप्रेक्षा का सिद्धान्त, वास्तविकता में, सत्य-दर्शन का सिद्धान्त है, सत्य के प्रति एकनिष्ठ समर्पण का सिद्धान्त है, अपनी सभी पूर्वधारणाओं और संस्कारों को नकार कर सत्य को/सचाई को ग्रहण करने का, उसे धारण करने का सिद्धान्त है।
१ (क) अणुप्पेहा णाम जो मणसा परियट्टेइ णो वायाए।-दशवै० चूणि, पृष्ठ २६
-पठित व श्रुत अर्थ का मन से (वाणी से नहीं) चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है। (ख) शरीरादीनां स्वभावानुचिन्तनमनुप्रेक्षा। -सर्वार्थसिद्धि ६/२/४०६
-शरीर आदि के स्वभाव का पुनः पुनः चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है । (ग) परिज्ञातार्थस्य एकाग्रेण मनसा यत्पुनः पुनः अभ्यसनं अनुशीलनं सानुप्रेक्षा।
-कार्तिकेयानुप्रेक्षाटीका ४६६ -जाने हुए विषय का एकाग्रचित्त से बार-बार चिन्तन-अनुशीलन करना अनुप्रेक्षा है।
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