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८ प्रेक्षाध्यान-योग साधना
भगवान महावीर ने साधना क्षेत्र में बढ़ने वाले साधक को एक अनुभूत सूत्र दिया
इह आणाकंखी पंडिए अणिहे एगमप्पाणं संपेहाए धुणे सरीरं कसेहि अप्पाणं, जरेहि अप्पाणं ।
-आचारांग ४/४६० अर्थात्-ज्ञानी पुरुष एकमात्र आत्मा की संप्रेक्षा करे; वह शरीर को प्रकंपित करे (धुने-जिस प्रकार रुई धुनने वाला धुनिया रुई को धुनता है, उस प्रकार धुने अर्थात् जर्जरित करे), कषाय आत्मा को कृश करे और उसे जीर्ण करे।
भगवान महावीर की साधना अप्रमाद की साधना थी और अप्रमाद का सर्वप्रथम सूत्र है- आत्म-दर्शन, आत्मा को देखना। भगवान ने साधक के लिए कहा
संपिक्खए अप्पगमप्पएण अर्थात्-आत्मा को आत्मा से देखो।
प्रेक्षाध्यान-योग प्रेक्षाग्यान क्या है ?
भगवान ने आत्म-दर्शन को उत्सुक साधक के लिए शब्द दिया 'संपेहाए । संपेहाए शब्द का अर्थ है गहराई से देखना, ध्यानपूर्वक देखना, या देखने में ही तल्लीन हो जाना; उस समय सिर्फ देखना ही हो, विचार न हो, निर्विचार की स्थिति आ जाये।
दो शब्द हैं-प्रेक्षा और संप्रेक्षा (संपेहा)। प्रेक्षा सामान्य जन की भाषा में सिर्फ देखने तक ही सीमित है, यद्यपि इसमें भी गहराई से देखा जाता है किन्तु निर्विचारता की स्थिति नहीं आ पाती। लेकिन ध्यानयोग की साधना में प्रेक्षा शब्द का प्रयोग संप्रेक्षा के अर्थ में किया जाता है। जो
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