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________________ तितिक्षायोग साधना १९६ धर्म का मूल लक्ष्य एक ही है-आत्मिक शान्ति की प्राप्ति । शान्ति के लिए ही धर्म का आचरण किया जाता है। इसीलिए धर्म मानव के आचार-विचार को शुद्ध और निर्मल बनाने का वाला मुख्य तत्त्व है। इस दृष्टि से विचार किया जाय तो ये सभी (दश श्रमण धर्म) धर्म, तितिक्षायोग की साधना हैं । क्योंकि तितिक्षायोग भी तो शान्ति की साधना ही है। तितिक्षायोग का साधक साम्यभाव की साधना करता है, वह अनुकूल-परिस्थितियों में भी सम बना रहता है, उनमें राग-द्वष नहीं करता है। तितिक्षायोगी उपसर्गों और परीषहों को भी समताभाव से जीतता है । उसका समत्व किसी भी स्थिति-परिस्थिति में खण्डित नहीं होता है। तितिक्षायोग की तीन निष्पत्तियाँ हैं-सहनशीलता, समताभाव और शान्ति । वह शान्ति में, समताभाव में स्थिर रहता है। इस स्थिरता के कारण तथा परिणामों में संकल्प-विकल्प, राग-द्वेष न होने के कारण वह मुक्ति के समीप पहुँचता जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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