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________________ ७ तितिक्षायोग साधना तितिक्षा का अभिप्राय तितिक्षा का अर्थ है-सहनशीलता, समभाव और शान्ति। इन्हें अंग्रेजी में व्यक्त करना चाहें तो Endurance, Folerance और Peace कह सकते हैं। सहनशीलता और सहिष्णता लगभग एक ही अर्थ को व्यक्त करते हैं, वह है समभाव । इसीलिए गांधीजी ने अंग्रेजी के शब्द tolerance का हिन्दी पर्याय 'समभाव' किया। तितिक्षा शब्द का अभिप्रेत हुआ समभाव (tolerance) और शान्ति (peace) । तितिक्षायोग की साधना में साधक इन दोनों की साधना करता है। वह तन को और मन को भी साधता है, उन्हें सहनशील होने की ट्रेनिंग देता है, बर्दाश्त करने की क्षमता बढ़ता है, कठिन से कठिन परिस्थिति में भी तनमन को संतुलित बनाये रखने की आदत डालता है। साधक समभाव की भी साधना करता है और शान्ति की भी साधना करता है। समभाव का अर्थ है-अनुकूल और प्रतिकूल-दोनों ही परिस्थितियों में उद्वेलितः न होना, राग-द्वेष रहित होकर तटस्थ रहना । शान्ति का अभिप्राय है-मानसिक संकल्पों-विकल्पों, आवेगों-संवेगों में न उलझना, आत्मिक भावों में स्थिर रहना, तनावमुक्त रहना। समभाव की साधना, साधक परीषहों पर विजय प्राप्त करके करता है ।। वह परीषहों को समभाव से सहन करता है, वह न उस अवसर पर घबड़ाता है और न ही दीन बनता है अपितु निर्भीक योद्धा के समान उनका मुकाबला करता है और उन पर विजय प्राप्त करता है, फिर भी उसके मन में रागद्वष का संचार नहीं होता। परीषहजय : समत्व को साधना. जैन आगमों में बाईस प्रकार के परीषह बताये हैं जो इस प्रकार हैं(१) क्षुधा परीषह (२) पिपासा परीषह (३) शीत परीषह (४) उष्ण परीषह (५) दंश-मशक परीषह (६) अचेल परीषह (७) अरति परीषह (८) स्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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