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________________ १८८ जैन योग : सिवान्त और साधना यह तीसरा व्यक्ति ही ग्रंथिभेद करके सम्यक्दर्शन की प्राप्ति एवं श्रणी आरोहण करने में सक्षम होता है। ग्रन्थिभेद साधना के परिणाम ___ ग्रन्थिभेद साधना के परिणाम साधक के लिए बहुत हितकर, कल्याणकर और सुखद होते हैं। सबसे बड़ा लाभ साधक को ग्रंथिभेद से यह होता है कि उसकी चेतना का प्रवाह सहज हो जाता है, ग्रंथि न रहने से उनके प्रवाह में किसी भी प्रकार की रुकावट नहीं आती, उसके व्यक्तित्व में दोहरापन नहीं रहता, उसका अन्तर् और बाह्य एक समान रहता है। इसके परिणामस्वरूप उसकी सारी दुविधाएँ मिट जाती हैं, उसमें सरलता और ऋजुता आ जाती है तथा चित्त की भूमि विशुद्ध हो जाती है। विशुद्ध चित्तभूमि होने से वह धर्म का आचरण करता है, धर्म को धारण करता है, अपनी भावनाएँ विशुद्ध रखता है, अपने आत्म-परिणामों की प्रेक्षा करता है और श्रेणी आरोहण करके कैवल्य प्राप्त कर लेता है। कैवल्य की उपलब्धि के उपरान्त तो उसे मुक्ति प्राप्त हो ही जाती है। इस प्रकार ग्रंथिभेदयोग साधना मुक्ति की सहज साधना है। योगमार्ग के अभ्यासियों के लिए आवश्यक साधना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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