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________________ योग की आधारभूमि : श्रद्धा और शील [१] १२५ सचित्त वस्तु में डालकर रखना (२) सचित्त पिधान-सचित्त वस्तु से ढककर रखना । (३) कालातिक्रम-समय पर दान न देना, असमय के लिए कहना। (४) परव्यपदेश-दान न देने की भावना से अपनी वस्तु को पराई कह देना। (५) मत्सरता-ईर्ष्या व अहंकार की भावना से दान देना । ये श्रावक के बारह व्रत हैं। अन्तिम समय की साधना : संलेखना गृहस्थ साधक जीवन भर व्रतों की आराधना-साधना करता है। किन्तु उसकी साधना कितनी सफल हुई है, उसके अन्तर्मन में कितना समताभाव आया है, इसकी कसौटी यह अन्तिम साधना-संल्लेखना है। जिस प्रकार विद्यार्थी के वर्ष भर के अध्ययन की कसौटी उसकी वार्षिक परीक्षा है, वैसी ही स्थिति साधक के जीवन में संल्लेखना की है। संल्लेखना मृत्यु का साहसपूर्वक एक मित्र की भाँति स्वागत करने के समान है । जब गृहस्थ साधक को यह विश्वास हो जाता है कि उसका अन्तिम समय निकट आ गया है, उसे परलोक के लिए प्रयाण करना है तो वह काय और कषाय को कम करता है। काय को कृष करने का अर्थ है-काया से ममत्वभाव को दूर करना। इनके लिए वह आहार आदि का शनैः-शनैः त्याग करता जाता है और कषाय को वह अपने हृदयस्थित समताभाव द्वारा कम करता रहता है। इस प्रकार वह अपने आपको परलोकगमन के लिए तैयार कर लेता है । इस साधना से शुभ परिणामों में उसकी मृत्यु होती है और वह उच्चगति पाता है। इस व्रत के पाँच अतिचार हैं-(१) इहलोकाशंसा-प्रयोग-इस लोक में राजा, सेठ आदि बनकर (मरने के बाद अगले जन्म में) सुख भोगू । (२)परलोकाशंसा प्रयोग-मृत्यु के उपरान्त आगामी भव में स्वर्ग के सुख भोगने की इच्छा। (३) जीविताशंसा प्रयोग-यश-कीर्ति आदि की प्राप्ति के लोभ में अधिक समय तक जीवित रहने की इच्छा। (४) मरणाशंसा प्रयोग–अनशन आदि अथवा शारीरिक कष्टों से घबड़ाकर मृत्यु की इच्छा करना । (५) कामभोगाशंसा प्रयोग-आगामी जन्म में कामभोग (सांसारिक सुख) पाने की तीव्र अभिलाषा। गृहस्थ की योग साधना गृहस्थ साधक के पाँच अणुव्रत मूलगुण कहलाते हैं और सात उत्तर गण (३ गुणवत और ४ शिक्षाक्त) हैं । मूलगुणों के रूप में वह योग के प्रथम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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