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१२० जैन योग : सिद्धान्त और साधना
आदि किराये पर देना तथा बड़े-बड़े मकान आदि बनवाकर किराये पर देना, (५) स्फोटकर्म - सुरंग आदि का निर्माण करने का व्यवसाय, (६) दन्तवाणिज्य - हाथी दाँत, पशुओं के नख, रोम, सींग आदि का व्यापार ( ७ ) लाक्षा वाणिज्य - लाख का व्यापार ( लाख अनेक त्रस जीवों की उत्पत्ति का कारण है, अत: इस व्यवसाय में अनन्त त्रस जीवों का घात होता है ) ( 5 ) रस वाणिज्य – मदिरा, सिरका आदि नशीली वस्तुएँ बनाना और बेचना, (2) विष वाणिज्य - विष, विषैली वस्तुएँ, शस्त्रास्त्र का निर्माण और विक्रय (१०) केश वाणिज्य -बाल व बाल वाले प्राणियों का व्यापार (११) यन्त्र-पीड़न कर्म - बड़े-बड़े यन्त्रों - मशीनों को चलाने का धन्धा, (१२) निलच्छन कर्म — प्राणियों के अवयवों को छेदने और काटने का कार्य, (१३) दावाग्निदान कर्म-वनों में आग लगाने का धन्धा (१४) सरोहदतड़ागशोषणता कर्म-सरोवर, झील, तालाब आदि को सुखाने का कार्य, (१५) असतोजनपोषणता कर्म - कुलटा स्त्रियों-पुरुषों का पोषण, हिंसक प्राणियों (बिल्ली, कुत्ता आदि) का पालन और समाज विरोधी तत्त्वों को संरक्षण देना आदि कार्य ।
इनसे मिलते-जुलते अन्य ऐसे व्यवसाय जिनमें महारम्भ - महापरिग्रह होता है, उन्हें भी सुश्रावक नहीं करता ।
इस व्रत के पाँच अतिचार हैं- (१) सचित्ताहार - सचित्त वस्तुओं की मर्यादा का उल्लंघन करना ( २ ) सचित्त प्रतिबद्धाहार - जिस सचित्त वस्तु का त्याग कर रखा है, उससे स्पर्श की हुई अन्य सचित्त वस्तु का आहार (३) अपक्वाहार - बिना पके फल आदि, कच्चे शाक इत्यादि खा लेना (४) दुष्पषवाहार - जो वस्तु आधी पकी हो अथवा अधिक पक गई हो उसको खा लेना (५) तुच्छौषधिमक्षण - जिन वस्तुओं में खाने का अंश कम हो और फेंकने का अधिक, उन वस्तुओं का आहार करना । (३) अनर्थदण्डविरमण व्रत
श्रावक की अपेक्षा से पाप कर्म के दो भेद किये गये हैं- ( १ ) अर्थदण्ड और (२) अनर्थदण्ड । अर्थदण्ड तो प्रयोजनवश किया जाता है । स्वयं के अथवा परिवार के पालन-पोषण के लिए जो सावद्य प्रवृत्तियाँ (पाप प्रवृत्तियाँ) की जाती हैं, वे अर्थदण्ड हैं । किन्तु इनके अतिरिक्त ऐसी पाप प्रवृत्तियाँ जिनसे लाभ तो कुछ नहीं होता और व्यर्थ का पाप बँधता है, उन्हें अनर्थदण्ड कहते हैं । इसमें श्रावक उन बेकार की पाप प्रवृत्तियों का त्याग करता है ।
अनर्थदण्ड - निष्प्रयोजन हिंसा अथवा पाप के चार रूप हैं(१) अपध्यानाचरित - चिन्ता और क्रूर विचारों से होने वाली हिंसा | चिन्ता
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