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योग की आधारभूमि : बद्धा और शील [१]
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पानी, (२१) मुखवास, (२२) वाहन, (२३) उपानत ( जूते आदि), (२४) शय्यासन (२५) सचित्त वस्तु, (२६) खाने के अन्य पदार्थ |
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इन २६ पदार्थों की मर्यादा श्रावक जीवन भर के लिए करता है । इसके अतिरिक्त वह प्रतिदिन अपनी मर्यादा को और संकुचित करता है । इसके लिए वह प्रतिदिन १४ नियमों का चिन्तवन करके अपनी शक्ति के अनुसार उन्हें ग्रहण करता है ।
चौदह नियम --- ( १ ) सचित्त - पृथ्वीकाय, वनस्पतिकाय आदि के सेवन की मर्यादा, (२) द्रव्य - खाद्य पदार्थों की संख्या निश्चित करना, (३) विजय - घी, दूध, दही, तेल गुड़ — ये पदार्थ विगय हैं, इनमें से कुछ अथवा सभी पदार्थों का त्याग करना, (४) उपानह — जूते-मोजे आदि पहनने की यर्यादा, (५) ताम्बूल - पान-सुपारी इलायची आदि की मर्यादा, (६) वस्त्र - वस्त्र पहनने की मर्यादा, (७) कुसुम - पुष्प, इत्र, सुगन्धित पदार्थों की सीमा, (८) वाहन - सवारी आदि की मर्यादा, (६) शयन - शय्या एवं स्थान की मर्यादा, (१०) विलेपन – केसर, चन्दन आदि शरीर पर विलेपन की जाने वाली वस्तुओं की मर्यादा, (११) ब्रह्मचर्य नियम - ब्रह्मचर्य पालन का नियम लेना, (१२) विशा परिमाण -- दसों दिशाओं में गमनागमन का नियम, (१३) स्नान - नियम -स्नान का त्याग अथवा स्नान हेतु जल का परिमाण, (१४) भक्त – आहार- पानी तथा अन्य खाद्य पदार्थों का वजन निश्चित करना ।
ये चौदह नियम श्रावक एक अहोरात्र ( २४ घन्टे ) के लिए लेता हैअर्थात् एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक ।
श्रावक को उपभोग - परिभोग पदार्थों को प्राप्त करने के लिए कोई न कोई धन्धा या रोजगार करना ही पड़ता है; किन्तु सुश्रावक ऐसा व्यापार अथवा आजोविका का साधन अपनाता है, जिसमें कम से कम हिंसा हो ।
कुछ धन्धे ऐसे हैं जिनमें महारम्भ- महापरिग्रह होता है । उनसे अधिक गाढ़े और चिकने कर्मों का बँध होता है । ऐसे रोजगारों को कर्मादान कहा गया है । सुश्रावक इन कर्मादानों को आजीविका हेतु नहीं अपनाता ।
कर्मादान पन्द्रह हैं |
कर्मादान -- ( १ ) अंगार कर्म - लकड़ी से कोयले बनाकर बेचने का व्यवसाय, (२) वन कर्म - जंगलों को ठेके पर लेकर वृक्षों को काटने का व्यवसाय, (३) शकट कर्म – अनेक प्रकार के गाड़ी, गाड़े, मोटर, ट्रक, रेलवे के इन्जन, डिब्बे, स्कूटर आदि वाहन बनाकर बेचना, (४) भाटक कर्म – पशु तथा वाहन
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