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________________ ११८. जैन योग : सिद्धान्त और साधना किसी भी प्रकार की स्वार्थमूलक प्रवृत्ति नहीं करता। वह दशों दिशाओं में अपने गमनागमन की सीमा निश्चित कर लेता है। __ इस गुणव्रत का महत्त्व इतना अधिक है कि निश्चित किये हुए क्षेत्र से बाहर के लिए वह त्रस और स्थावर-दोनों प्रकार के जीवों की घात से विरत हो जाता है। उसके अहिंसाणुव्रत में गुणात्मक वृद्धि हो जाती है। __ इसके पाँच अतिचार हैं—(१) ऊर्ध्वदिशा में मर्यादा का अतिक्रमण, (२) अधोदिशा में मर्यादा का अतिक्रमण, (३)तिरछी दिशा (चारों दिशाओं और चारों विदिशाओं में) में मर्यादा का अतिक्रमण करना (४) क्षेत्र वृशि-असावधानी या भूल से मर्यादा को बढ़ा लेना अथवा किसी एक दिशा के परिमाण को कम करके दूसरी दशा में मर्यादा बढ़ा लेना, (५) स्मृति अन्तर्धान-किसी दिशा में श्रावक गमन कर रहा हो, किन्तु निश्चित की हुई मर्यादा को भूल जाय, भ्रम में पड़ जाय; फिर भी आगे बढ़ता रहे तो यह स्मृति अन्तर्धान नाम का अतिचार होता है । (२) उपभोग-परिमोगपरिमाण व्रत जो वस्तु एक बार ही उपयोग में आवे, जैसे-भोजन, पानी, आदि, वह उपभोग कहलाती है और जिसका बार-बार उपयोग किया जा सके, जैसेवस्त्र, आभूषण, फर्नीचर, मकान, कार, स्कूटर आदि, वह परिभोग कहलाती है। श्रावक इन उपभोग-परिभोग की वस्तुओं को मर्यादित करता है।। ___ यद्यपि परिग्रहपरिमाण अणव्रत में श्रावक इन वस्तुओं की मर्यादा कर लेता है, किन्तु इस व्रत में वह उस मर्यादा को और भी संकूचित करता है । इससे उसके जीवन में सरलता और सादगी का संचार होता है तथा महारंभ, महापरिग्रह और महातृष्णा से वह मुक्त हो जाता है। आगम' में उपभोग-परिभोग सम्बन्धी २६ वस्तुओं के नाम निर्देश किये गये हैं (१) शरीर आदि पोंछने का अंगोछा आदि, (२) दाँत साफ करने का मंजन, टूथपेस्ट आदि (३) फल (४) मालिश के लिए तेल आदि (५) उबटन के लिए लेप आदि, (६) स्नान के लिए जल, (७) पहनने के वस्त्र, (८) विलेपन के लिए चन्दन, (६) फूल, (१०) ओभरण, (११) धूप-दीप, (१२) पेय, (१३) पक्वान्न, (१४) ओदन, (१५) सूप-दाल, (१६) घृत आदि विगय, (१७) शाक, (१८) माधुरक (मेवा), (१६) जेमन-भोजन के पदार्थ, (२०) पीने का १ उपासकाध्ययन, अध्ययन १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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