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________________ जैन योग का स्वरूप ८६ समतायोग से सूक्ष्म कर्मों का अर्थात् विशिष्ट चारित्र-यथाख्यात चारित्र और केवल उपयोग (केवलज्ञान-दर्शन) को आवृत करने वाले ज्ञानावरण, दर्शनावरण और मोहनीय कर्मों का नाश तथा अपेक्षा-तन्तु का छेद हो हो जाता है । अपेक्षा-तन्तु (आशा-डोर) का विच्छेद हो जाने का तात्पर्य यह है कि समतायोगी को किसी भी प्रकार के सांसारिक सुखों की अपेक्षा-इच्छा नहीं रहती। इसीलिए वह प्राप्त लब्धियों का उपयोग भी नहीं करता, क्योंकि उसे यश-कामना भी नहीं रहती। (१) लब्धियों में अप्रवृत्ति, (२) सूक्ष्म कर्मों (ज्ञान-दर्शन-चारित्र के प्रतिबन्धक ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय आदि कर्म) का क्षय और (३) अपेक्षातन्तु का विच्छेद-ये तीन समतायोग के विशिष्ट फल हैं, जिनके आस्वादन से आत्मा को अमृतत्व की प्राप्ति होती है। ५. बृत्तिसंक्षययोग वृत्तिसंक्षययोग आध्यात्मिक योग का अन्तिम सोपान है। इसका स्वरूप बताते हुए कहा गया है आत्मा में मन और शरीर के सम्बन्ध से उत्पन्न होने वाली विकल्परूप तथा चेष्टारूप वृत्तियों का अपुनर्भावरूप से जो निरोध-आत्यन्तिक क्षय-समूल नाश होता है, उसका नाम वृत्तिसंक्षययोग है। आत्मा स्वभाव से निस्तरंग सागर के समान निश्चल है । जैसे वायु के सम्पर्क से उसमें तरंगें उठती हैं, उसी प्रकार आत्मा में भी मन और शरीर के संयोग से संकल्प-विकल्प तथा अनेक प्रकार की चेष्टारूप वृत्तियाँ उठती रहती हैं। इनमें विकल्परूप वृत्तियाँ मनोद्रव्य के संयोग से उत्पन्न होती हैं और चेष्टारूप वृत्तियाँ शरीर-सम्बन्ध से उत्पन्न होती हैं । इन विकल्प और चेष्टारूप वृत्तियों का समूल नाश ही वृत्तिसंक्षययोग है। ___यह वृत्तिसंक्षय नाम का योग आत्मा को कैवल्य (केवलज्ञान-दर्शन) की प्राप्ति के समय तथा निर्वाण प्राप्ति के समय प्राप्त होता है। यद्यपि वृत्ति १ (क) अन्यसंयोगवृत्तीनां, यो निरोधस्तथा तथा । अपुनर्भावरूपेण स तु तत्संक्षयो मतः ।। -योगबिन्दु ३६६ (ख) विकल्पस्पन्दरूपाणां, वृत्तीनामन्यजन्मनाम् । अपुनर्भावतो रोध: प्रोच्यते वृत्तिसंक्षयः ।। -उपाध्याय यशोविजयकृत योगभेदद्वात्रिंशिका २५ २ योगबिन्दु व्याख्या श्लोक ४३१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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