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________________ ८१ जैन योग का स्वरूप शिव से उसका मिलन होता है तो वहाँ स्थित चन्द्र (शिवजी के मस्तक पर तथा सोमचक्र में चन्द्रमा स्थित माना गया है) से अमृत पाकर योगी को अनिर्वचनीय शीतलता और आनन्द की प्राप्ति होती है । इस विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है जैन योग में वर्णित तेजोलेश्या हठयोग - तन्त्रयोग आदि में कुण्डलिनी शक्ति के नाम से वर्णित हुई है । कुण्डलिनी का हठयोग में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसे उपनिषदों में 'नचिकेत अग्नि' कहा गया है । चैनिक योग दोपिका में इसे श्री I' lohin द्वारा spirit fire (आत्मिक अग्नि) कहा गया है । मैडम ब्लेवेट्स्की ने इसकी गति ३४५००० मील प्रति सैकिण्ड बताई है । इसके बारे में हठयोग के ग्रन्थों में अनेक प्रकार की सावधानियाँ रखने का निर्देश है, उनमें प्रमुख है कि जब तक साधक की वासना का क्षय न हो जाय, वह passion-proof न हो जाय तब तक कुण्डलिनी को जगाने का प्रयत्न उसे नहीं करना चाहिए, अन्यथा कुण्डलिनी शक्ति नीचे की ओर प्रवाहित होकर वासनाओं और कषायों के आवेग के अत्यधिक बढ़ा सकती है । यही बात योगविद्या ( हठयोग ) विशारद श्री हडसन ( Hudson) ने अपनी पुस्तक Science of Seership में कही है Note that the actual arising of the tremendous force of Kundalini may only be safely attempted under the expert guidance of a Master of occult science-otherwise Kundalini may act downwards and intensify both the desire-nature and activity of sexual organs. यही कारण है कि प्राचीन जैन योग (आगम साहित्य तथा ईसा की दशवीं शताब्दी तक रचे गये जैन साहित्य) में कुण्डलिनी की कोई चर्चा प्राप्त नहीं होती । वास्तव में जैन योगियों ने कुण्डलिनी जागरण को अपना लक्ष्य कभी नहीं बनाया । इसका कारण यह है कि कुण्डलिनी शक्ति की जागरणा अधिकांश योगी भौतिक शक्तियों के प्रदर्शन, यश आदि की प्राप्ति के लिए करते हैं, जैसा कि गोशालक ने किया था । यह भी सर्वविदित है कि हठयोग, वामकौल तन्त्रयोग के कारण ही बंगाल में कितना व्यभिचार और भ्रष्टाचार फैला था । तब दूरदर्शी और भूत-भविष्य के ज्ञाता जैन योगी, चिन्तक तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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