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योग के विविध रूप और साधना-पद्धति ५५ आत्मिक शुद्धि है, न आध्यात्मिक उन्नति; इसका लक्ष्य केवल भौतिकता है, शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता है। इसलिए इसे 'योग' मानने में आपत्ति हो सकती है। __ इस प्रकार योग के अनगिनत प्रकार हैं और विभिन्न रूपों में यह सर्वत्र प्रचलित है।
योगमार्ग की इन विविध साधना पद्धतियों पर दृष्टिपात करने से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि जब तक मानव अपने अन्तःकरण में सुप्त शक्तियों को पहचानता नहीं है तब तक वह योगमार्ग में गति नहीं कर सकता। योग साधना की पृष्ठभूमि तभी बनती है जब संकल्प बल सुदृढ़ होता है, मानसिक एकाग्रता बढ़ती है और मनुष्य एक लक्ष्य व ध्येय के प्रति समर्पित हो जाता है।
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