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५४ जैन योग : सिद्धान्त और साधना (विद्युत प्रवाह) रखा। मेस्मर के नाम पर ही इस सिद्धान्त का नाम मेस्मेरिज्म पड़ गया।
इसके बाद सन् १८४१ में मैनचेस्टर के डाक्टर बेड ने यह अनुभव किया कि किसी को प्रभावित करना या कृत्रिम निद्रा में लाना, सूचना शक्ति (Suggestion) पर निर्भर है । उन्होंने इस कृत्रिम निद्रा को Hypnosis नाम दिया। इसी के आधार पर इस विद्या का नाम Hypnotism पड़ गया।
इन दोनों विधियों से अनेक रोगों के सफल उपचार हुए। फ्रान्स के प्रसिद्ध मनोविज्ञानशास्त्री फ्रायड (Freud) ने तो हिप्नोटिज्म के प्रयोग से अनेक विक्षिप्तों का उपचार कर दिया।
यद्यपि ये दोनों विद्याएँ उस अर्थ में योग नहीं कही जा सकतीं जिस अर्थ में योग शब्द का प्रयोग भारत में हुआ है। किन्तु इन दोनों विद्याओं का सम्बन्ध सूक्ष्म अथवा तेजस् शरीर से है तथा इन शक्तियों के विकास के लिए चित्त की एकाग्रता आधारभूत है, इसलिए इन्हें आध्यात्मिक योग में नहीं तो भौतिक योग में तों परिगणित किया ही जा सकता है।
मेस्मेरिज्म और हिप्नोटिज्म दोनों में ही प्रयोगकर्ता को अपनी आकर्षण शक्ति बढ़ानी आवश्यक है। आकर्षण शक्ति बढ़ाने की साधना एकान्त कमरे में की जाती है। वहाँ किसी बिन्दु पर टकटकी लगाकर दृष्टि साधना की जाती है । उस समय साधक मन में दृढ़तापूर्वक यह भावना करता है कि 'मेरी आँखों के ज्ञान-तन्तु बलवान हो रहे हैं। मेरे नेत्र आकर्षक और प्रभावशाली हो रहे हैं । मैं निर्भय हैं। सिर ऊँचा करके सबके सामने देख सकता हूँ। मेरी मनःशक्ति प्रबल है।'
इस प्रकार की साधना का अभ्यास १५ मिनट से लेकर आधा घण्टे तक किया जाता है।
फिर किसी रोगी का उपचार करने के लिए उसे मार्जन (Pass) दिया जाता है। इसके लिए हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से निकालने वाले विद्य त प्रवाह को तीव्र किया जाता है। वह भी मन की दृढ़ता, एकाग्रता तथा 'मेरी अंगुलियों के अग्र भागों से तीव्र विद्य त प्रवाह बाहर निकल रहा है। इस भावना से होता है। इसे आजकल के योगियों की भाषा में शक्तिपात भी कहा जाता है।
___ अतः स्पष्ट है कि हिप्नोटिज्म और मेस्मेरिज्म में प्रवीण होने के लिए प्रयोक्ता को लगभग उसी प्रकार की साधना करनी पड़ती है, जैसी कि योगियों को। हाँ, यह बात अवश्य है कि हिप्नोटिज्म और मेस्मेरिज्म का उद्देश्य न
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