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योग के विविध रूप और साधना-पद्धति ५१ 'उत्तम सेवा' में सिद्धि प्राप्त करने के लिए षडंगयोग का साधन किया जाता है। इन छह अंगों के नाम हैं-(१) प्रत्याहार, (२) ध्यान, (३) प्राणायाम, (४) धारणा, (५) अनुस्मृति और (६) समाधि।।
__ स्पष्ट ही यह अष्टांग योग में उल्लिखित शब्द हैं, सिर्फ अनुस्मृति ही नया है तथा यम, नियम, आसन-अष्टांग योग के ये तीन अंग छोड़ दिये गये हैं।
प्रत्याहार द्वारा द्वारा इन्द्रियों का निग्रह किया जाता है।
रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान पर चित्त को एकाग्र करना ध्यान है।
प्राणायाम का स्वरूप बौद्ध योग में भी लगभग वैसा ही है जैसा अष्टांग योग मे बताया गया है-अर्थात् प्रोणवायु का निरोध एवं नियमन ।
धारणा में साधक अपने इष्ट मन्त्र का हृदय कमल पर जाप करता है। धारणा के स्थिर होने पर साधक को निरभ्र आकाश के सदृश स्थिर प्रकाश का चिह्न दिखाई देता है ।
___ अनुस्मृति उस पदार्थ के अनवच्छिन्न ध्यान को कहा जाता है, जिसके निमित्त योग साधना का प्रारम्भ किया गया है । इसका चिरकाल तक अभ्यास होने के बाद प्रतिभास (revelation) होने लगता है अर्थात् सृष्टि में स्थित समस्त पदार्थ एक पिंड के रूप में दिखाई देने लगते हैं। उस पिंड के समस्त बाह्य प्रपंचों पर ध्यान करने से समाधि रूप अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति शीघ्र हो जाती है।
सबसे विचित्र बात यह है कि साधक के लिए योग साधना करते हुए भी किसी प्रकार का खान-पान सम्बन्धी बन्धन नहीं बताया गया है।
योग-वियोग-अयोग योग और योगमार्ग का एक अन्य अपेक्षा से भी वर्गीकरण किया गया है, वह है-योग-वियोग-अयोग ।
योग और वियोग (विवेक)-मार्ग में यद्यपि पारमार्थिक दृष्टि से कोई अन्तर नहीं है। फिर भी व्यावहारिक भूमिका में इन दोनों में भेद है और उस भेद के अनुसार सिद्धि में भी अन्तर आ जाता है।
__अनादि काल से जीव संसार में परिभ्रमण कर रहा है। इस संसारी दशा में उसमें स्थूल और सूक्ष्मभाव परस्पर एक-दूसरे से नीर-क्षीर के समान
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