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________________ ५० जैन योग : सिद्धान्त और साधना क्योंकि इसमें पतन होने की सम्भावना नहीं है। जबकि योगी के पतित होने की सम्भावनाएं हैं। दूसरी विशेषता यह है कि ज्ञानमार्ग द्वारा मुक्ति शीघ्र प्राप्त हो सकती है। जबकि योगमार्ग द्वारा अनेक जन्म भी लग सकते हैं। तोसरी विशेषता यह है कि ज्ञानमार्ग सरल है और योगमार्ग कठिन; क्योंकि यौगिक प्रक्रियाएं काफी पेचीदी हैं। इन सब कारणों से योगमार्ग की अपेक्षा ज्ञानमार्ग श्रेष्ठ माना जाता है। बौद्ध-योग योग की परम्परा और आकर्षण से बौद्धधर्म-दर्शन भी अछूता नहीं रहा। इस दर्शन के भी अनेकों ग्रन्थों में योग सम्बन्धी वर्णन मिलता है। स्वयं तथागत बुद्ध ने भी ध्यान किया था। वे ज्ञान प्राप्ति के लिए वैदिक संन्यासियों के आश्रम में रहे और उन्होंने तीर्थंकर पार्श्व की परम्परा का अनुसरण करते हुए ध्यान साधना की। ध्यानयोग द्वारा ही उन्हें बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। बौद्धग्रन्थ 'ब्रह्मजाल सुत्त' तथा 'आटानटीय सुत्त' में भी इस विषय का कुछ वर्णन है। इनके अतिरिक्त 'मञ्जुश्री मूलकल्प', 'गुह्य समाजतन्त्र', 'साधनमाला', श्रीचक्रसंवर', 'सद्धर्म पुण्डरीक', 'सुखावतीव्यूहसूत्र', 'शमथयान अर्थात् 'समाधि' आदि अनेक ग्रन्थों में योग और यौगिक क्रियाओं का वर्णन हआ है। इन ग्रन्थों में 'गुह्यसमाज' योगिक वर्णन की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस ग्रन्थ के अठारहवें अध्याय में बौद्धधर्म में प्रचलित योग साधनाओं तथा उनके उद्देश्य और प्रयोजन का वास्तविक परिचय दिया गया है। साथ ही इसी अध्याय में बौद्ध तन्त्र के पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या भी की गई है, जो बौद्धतन्त्र में सर्वाधिक प्रचलित हैं। ___'उपाय' शब्द की व्याख्या करते हुए उसके चार भेद बताये गये हैं (१) सेवा, (२) उपसाधन, (३) साधन और (४) महासाधन । इसमें सेवा के दो अवान्तर भेद हैं-(१) सामान्य सेवा और (२) उत्तम सेवा । सामान्य सेवा का दूसरा नाम 'वज्रचतुष्टय' दिया गया है और उत्तम सेवा को 'ज्ञान सुधा' कहा गया है। - वज्र चतुष्टय किसी देवता के साक्षात्कार की प्रक्रिया है। इसके चार सोपान हैं-(१) शून्यता प्रत्यय, (२) शून्यता का बीजमन्त्र के रूप से परिणाम, (३) बीजमन्त्र का देवता के आकार का बन जाना और (४) देवता का विग्रह रूप में प्रकट होना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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