SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ जन योग : सिद्धान्त और साधना . उपनिषद, स्मृति और पुराण युग में जप अथवा जपयोग के अनेक प्रमाण मिलते हैं । विभिन्न प्रकार के मन्त्रों का जप किया जाता था। जप का महत्व प्रदर्शित करते हुए मनुस्मृति में कहा गया है विधियज्ञाज्जपयज्ञो विशिष्टो दशभिर्गुणैः। उपांशुः स्यायच्छतगुणः साहस्रो मानसः स्मृताः ॥ ये पाकयज्ञाश्चत्वारो विधियज्ञसमन्विताः । सर्वे ते जपयज्ञस्य कलां नाहन्ति षोडशीम् । -मनुस्मृति २/८५-८६ अर्थात्-दशपौर्णमासरूप कर्मयज्ञों की अपेक्षा जप यज्ञ दस-गुना श्रेष्ठ है; उपांशुजप सौ गुना और मानसजप सहस्रगुना श्रेष्ठ है। कर्मयज्ञ (दशपौर्णमास) ये जो चार पाकयज्ञ हैं-वैश्वदेव, बलिकर्म, नित्य श्राद्ध और अतिथि-सत्कार-ये जपयज्ञ की सोलहवीं कला (अंश) के बराबर भी नहीं हैं। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिये कि नामस्मरण और जपयोग में बहुत बड़ा अन्तर है। नामस्मरण में तो केवल अपने इष्टदेव के नाम का रटनमात्र ही होता है किन्तु जपयोग में किसी मन्त्र का विधिपूर्वक तल्लीनता के साथ जप किया जाता है। जपयोग में आसनशुद्धि, मनशुद्धि, वचनशुद्धि, स्थानशुद्धि आदि कई प्रकार की शुद्धियाँ करने के बाद स्थिर आसन और स्थिर मन से जप किया जाता है। जप के कई प्रकार हैं (१) नित्यजप-यह जप का वह प्रकार है जो प्रतिदिन किया जाता है । प्रातः अथवा सन्ध्या या मध्यान्ह अथवा तीनों समय किसी इष्ट मन्त्र का जप, बिना किसी प्रकार की इच्छा या कामना के किया जाता है । जपयोगी की यह दैनिक चर्या का एक अंग ही होता है। (२) नैमित्तिकजप-यह जप किसी देव को प्रसन्न करने के लिए अथवा किसी प्रकार की कामनापूर्ति के लिए किया जाता है । इसी प्रकार से काम्यजप भी किया जाता है। (३) प्रायश्चित्तजप-प्रमादवश या अनजान में कोई पाप-दोष हो जाय तो उसकी शुद्धि अथवा दोष-परिहार के लिये किया जाने वाला जप प्रायश्चित्त जप कहलाता है। (४) अचलजप-यह एक आसन पर बैठकर स्थिर मन एवं स्थिर काय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy