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________________ योग के विविध रूप और साधना-पद्धति ४१ के हैं । हाँ, वाममार्ग ने एक विशेष बात यह कही है कि आधीरात का समय ध्यान और जप के लिए श्रेष्ठ होता है। तारकयोग तारकयोग का प्रचार निजानन्द सम्प्रदाय (प्रणामी धर्म) के आदि-- संस्थापक श्री देवचन्द्रजी तथा प्राणनाथ ने किया है। तारकयोग एक मन्त्रविशेष द्वारा प्राप्त ज्ञान को कहा गया है जिसमें ब्रह्मसाक्षात्कार का भेद बताया गया है। इसका मुख्य आधार प्रेम है । जहाँ तक सच्चा प्रेम उत्पन्न नहीं होता वहाँ तक तारकयोग सिद्ध नहीं होता। इस सम्प्रदाय की मान्यता है कि सच्चे प्रेम से ही मनुष्य बन्धन-मुक्त हो जाता है। . ऋजुयोग ऋजुयोग भक्तियोग के अन्तर्गत ही है। इसमें (ऋजुयोग में) मृदुता एवं सरलता अति आवश्यक है। ऋजुयोग के चार अंग हैं-(१) सत्संग, (२) भगवत् कथाश्रवण, (३) कीर्तन और (४) जप । ऋजुयोग की मान्यता है कि इन चारों अंगों अथवा इनमें से किसी भी एक अंग का सच्चे हृदय से पालन करने से ही निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है। वस्तुतः ऋजुयोग सरल मार्ग है। इस पर ज्ञानी-अज्ञानी सभी चल सकते हैं, दुर्बल शरीर वालों को भी इस पथ पर चलने में कठिनाई नहीं होती। हठयोग एवं तन्त्रयोग के समान इसमें कोई जटिल यौगिक प्रक्रिया तथा विधिविधान नहीं है। जपयोग जपयोग एक अत्यन्त ही सरल और सिद्धिप्रद विद्या है । इसके बारे में यह उक्ति सर्वत्र प्रचलित है जपासिद्धिः जपासिद्धिः जपात् सिद्धिः न संशयः इसीलिए गीताकार ने गीता (१०/२५) में जप (यज्ञ) को अपनी विभूति बताया है। वैदिक युग में ऋषिगण वेदमन्त्रों का बार-बार-अनेक बार उच्चारण करते रहते थे, उनकी इस क्रिया को जप की संज्ञा दी जा सकती है। वेदोक्त गायत्री मन्त्र का प्रातः, संध्या और मध्यान्ह के समय जप किया ही जाता था। अतः कहा जा सकता है कि वैदिक युग में भी जप प्रचलित था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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