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तीर्थकर या जिन मूर्तियाँ
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चन्द्रप्रभ
चन्द्रप्रभ इस अवसर्पिणो के आठवें जिन हैं। इनका लांछन शशि और यक्ष-यक्षी विजय ( या श्याम ) एवं भृकुटि ( या ज्वाला ) हैं। खजुराहो में चन्द्रप्रभ की कुल तीन मूर्तियां हैं, जिनमें से एक पार्श्वनाथ मंदिर के गर्भगृह की पश्चिमी भित्ति पर है । दो मूर्तियां (क्रमशः १/१३ एवं १/१५) में हैं। तीनों ही उदाहरणों में चन्द्रप्रभ ध्यान-मुद्रा में आसीन हैं । पार्श्वनाथ मंदिर की मूर्ति में द्विभुज यक्ष-यक्षी के हाथों में अभय-मुद्रा (या पद्म) और फल हैं। दूसरे उदाहरण में यक्ष द्विभुज हैं, किन्तु यक्षी चतुर्भुजा हैं । फल और धन के थैले से युक्त यक्ष कुबेर के लक्षणों वाला है। चतुर्भुजा यक्षी के तीन अवशिष्ट करों में वरदमुद्रा, पुस्तक और कमण्डलु हैं। इन स्वतंत्र मूर्तियों के अतिरिक्त सा० शां० जै० क० सं० की एक द्वितीर्थी मूर्ति (के० ६०) में भी एक जिन आकृति के नीचे लांछन के रूप में अद्धचन्द्र उत्कीर्ण है । शांतिनाथ
शांतिनाथ इस अवसर्पिणी के १६वें जिन हैं। उनका लांछन मृग और यक्ष-यक्षी, गरुड (या वाराह) एवं निर्वाणी (या महामानसी) हैं। २४ जिनों में ऋषभ, नेमि, पार्श्व और महावीर के बाद शांतिनाथ की ही सर्वाधिक मूर्तियां मिलती हैं। देवगढ़, अहार, बानपुर, चाँदपुर, खजुराहो एवं मध्य भारत के अन्य दिगम्बर स्थलों पर शांतिनाथ का निरूपण विशेष लोकप्रिय रहा है। इन स्थलों पर शांतिनाथ की अतिमानवाकार विशाल मूर्तियां भी बनीं। ये मूर्तियां १२ से १५ फीट ऊँची हैं। खजुराहो में शांतिनाथ की कुल चार मूर्तियां हैं। ये मूर्तियां ११वीं-१२वीं शती ई० की हैं । दो उदाहरणों में मूलनायक को ध्यानस्थ और दो में कायोत्सर्ग में निरूपित किया गया है। शांतिनाथ मंदिर में शांतिनाथ को १२ फीट ऊँची कायोत्सर्ग प्रतिमा (१०२८ ई०) प्रतिष्ठित है। चमकदार आलेप से युक्त यह विशाल प्रतिमा मनोज्ञ, एक योगी के गंभीर चिंतन के भाव से युक्त तथा आनुपातिक अंग योजना वाली है। इस विशाल प्रतिमा में शांतिनाथ को सिंहासन के स्थान पर पद्म पर खड़ा दिखाया गया है। इस मूर्ति के दोनों ओर की स्वतंत्र यक्ष-यक्षी मूर्तियां बाद में दोवार में लगाई गई प्रतीत होती हैं । अन्य तीन मूर्तियों में से दो सा० शां० जै० क० और एक जाडिन संग्रहालयों में हैं । एक उदाहरण (सा० शां० जै० क० सं० के० ३९) के अतिरिक्त अन्य सभी में पार्श्ववर्ती चामरधरों की आकृतियाँ बनी हैं। शांतिनाथ के यक्ष-यक्षी सामान्य लक्षणों वाले हैं। यक्ष के हाथों में फल और धन का थैला उसके कुबेर होने का संकेत देता है । यक्षी के हाथों में अभय-मुद्रा एवं धनुष प्रदर्शित हैं । मृग लांछन शांतिनाथ मंदिर की प्रतिमा के अतिरिक्त अन्य सभी उदाहरणों में स्पष्ट है। कुंथुनाथ
कुंथुनाथ इस अवसर्पिणी के १७वें जिन हैं जिनका लांछन छाग (या बकरा) है और उनके यक्ष-यक्षी गन्धर्व एवं बला (या अच्युता या गांधारी) है । खजुराहो में अज लांछन वाले कंथुनाथ की ल० ११वीं शती ई० की केवल एक मूर्ति है । यह मूर्ति मंदिर-१२ (१२/१) में
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