________________
४६
अभिनन्दन
अभिनन्दन इस अवसर्पिणी के चौथे तीर्थंकर हैं । उनका लांछन कपि और यक्ष-यक्षी यक्षेश्वर ( या ईश्वर ) और कालिका ( या काली या वज्रशृंखला) हैं । खजुराहो में इनकी कुल दो मूर्तियाँ हैं । दसवीं - ग्यारहवीं शती ई० की इन मूर्तियों में अभिनन्दन ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं और पीठिका पर कपि लांछन भी बना है । एक मूर्ति पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह की पश्चिमी भित्ति पर है । इस उदाहरण में द्विभुज यक्ष यक्षी के करों में अभयमुद्रा और फल ( या जलपात्र) प्रदर्शित हैं दूसरी मूर्ति ( मन्दिर ३) में भी द्विभुज यक्ष-यक्षी अभयमुद्रा
।
और फल
युक्त हैं ।
सुमतिनाथ
खजुराहो का जैन पुरातत्त्व
पाँचवें जिन सुमतिनाथ का लांछन क्रौंच पक्षी है तथा उनके यक्ष-यक्षी तुंबरू और महाकाली (या नरदत्ता ) हैं । खजुराहो में सुमतिनाथ की केवल दो ही मूर्तियाँ हैं । पहली मूर्ति पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह की उत्तरी भित्ति पर है । दूसरी मूर्ति मन्दिर ३ में है । दोनों ही उदाहरणों में मूलनायक ध्यान - मुद्रा में आसीन हैं और उनके साथ सामान्य लक्षणों वाले द्विभुज यक्ष - यक्षी निरूपित हैं, जिनके हाथों में अभयमुद्रा और फल ( या पुष्प ) हैं ।
पद्मप्रभ
पद्मप्रभ इस अवसर्पिणी के छठे जिन हैं, जिनका लांछन पद्म और यक्ष-यक्षी कुसुम एवं अच्युता ( या मनोवेगा) हैं । खजुराहो में पद्मप्रभ की केवल एक ही मूर्ति है । १०वीं शती ई० की यह मूर्ति पार्श्वनाथ मन्दिर के मण्डप में सुरक्षित है । पद्म लांछन से युक्त इस ध्यानस्थ मूर्ति में चतुर्भुज यक्ष-यक्षी आकारित हैं जिनके लक्षण परम्परा सम्मत नहीं हैं । परिकर में वीणावादन करती सरस्वती तथा जिनों की लघु आकृतियाँ भी बनी हैं ।
सुपार्श्वनाथ
सुपार्श्वनाथ इस अवसर्पिणी के ७वें जिन हैं जिनका लांछन स्वस्तिक है । सुपार्श्वनाथ के सिर पर एक, पाँच या नौ सर्पफणों के छत्र प्रदर्शित होते हैं । स्वतन्त्र मूर्तियों में कुछ अपवादों के अतिरिक्त सुपार्श्वनाथ के साथ स्वस्तिक लांछन का उत्कीर्णन नहीं हुआ है । मूर्तियों में सामान्यतः पाँच या नौ सर्पफणों के छत्र के आधार पर ही सुपार्श्वनाथ की पहचान की गई है । सुपार्श्वनाथ के यक्ष-यक्षी मातंग और शान्ता ( या काली ) हैं । खजुराहो में ल० १२वीं शती ई० की दो मूर्तियाँ हैं । ये मूर्तियाँ क्रमशः मन्दिर ६ और १३ में हैं । इनमें सुपार्श्वनाथ कायोत्सर्ग में खड़े हैं और उनके सिर के ऊपर पाँच सर्पफणों का छत्र प्रदर्शित है । दोनों उदाहरणों में यक्ष-यक्षी अनुपस्थित हैं । मन्दिर १३ की मूर्ति में पीठिका पर स्वस्तिक लांछन भी बना है। पीटिका के मध्य में पद्म धारण करने वाली शान्ति देवी की मूर्ति बनी है । सुपार्श्वनाथ से सम्बद्ध करने के उद्देश्य से देवी के सिर पर सर्पफणों का छत्र भी दिखाया गया है । चतुर्भुज देवी के हाथों में अभय मुद्रा, चक्राकर सनाल पद्म पुस्तक-पद्म और
जलपात्र हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org