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तीर्थकर या जिन मूर्तियाँ
अवशिष्ट हाथों में सर्प, पद्म और धन का थैला प्रदर्शित हैं, जबकि जाडिन संग्रहालय की एक मूर्ति में वरद्-मुद्रा, परशु, श्रीफल और जलपात्र हैं। चक्रेश्वरी के निरूपण में चक्र के बाद गदा और शंख का प्रदर्शन सर्वाधिक लोकप्रिय था।
अजितनाथ
अजितनाथ इस अवसर्पिणी के दूसरे तीर्थकर हैं। उनका लांछन गज और यक्ष-यक्षी महायक्ष एवं अजितबला (या अजिता या रोहिणी) हैं । खजुराहो में अजितनाथ की कुल चार मूर्तियाँ हैं। ये सभी मूर्तियाँ साहू शांतिप्रसाद जैन कला संग्रहालय (आगे से सा० शा० ० क० सं०) में हैं । सभी उदाहरणों में गज लांछन उत्कीर्ण है । ल० ११वीं-१२वीं शती ई० की इन मूर्तियों में यक्ष-यक्षी के निरूपण में तनिक भी परम्परा का पालन नहीं हुआ है । एक उदाहरण (के० २२) के अतिरिक्त अन्य सभी में मूलनायक ध्यानमुद्रा में आसीन हैं। एक उदाहरण में केश-रचना जटा के रूप में प्रदर्शित है। यक्ष और यक्षी की आकृतियाँ केवल एक ही उदाहरण में बनी हैं। सा० शां० जै० क० सं० की एक मूर्ति (के० २२) में राहु और केतु सहित पाँच ग्रहों की भी आकृतियाँ पीठिका पर बनी हैं। यहाँ सूर्य, सोम, मंगल और बुध का अंकन नहीं हुआ है। सम्भवनाथ
तीसरे तीर्थंकर सम्भवनाथ का लांछन अश्व है और उनके यक्ष-यक्षी त्रिमुख और दुरितारि (या प्रज्ञप्ति) हैं। खजुराहो में सम्भवनाथ की पाँच मूर्तियाँ हैं । ये मूर्तियाँ ११वीं-१२वीं शती ई० की हैं और इनमें यक्ष-यक्षी पारम्परिक लक्षणों वाले नहीं हैं। मन्दिर १२ की मूर्ति पर ११५८ ई० का एक लेख भी है। सभी उदाहरणों में मूलनायक ध्यानमुद्रा में आसीन हैं और मूर्ति पीठिकाओं पर अश्व लांछन उत्कीर्ण है । ल० १०वीं शती ई० की एक विशाल मूर्ति पार्श्वनाथ मन्दिर के मण्डप के भीतर की उत्तरी दीवार के समीप रखी है । मयूर वाहन वाले चतुर्भुज यक्ष को केश-रचना लम्बो जटा जैसी है और उनके हाथों में फल, पद्म, शूल और पुस्तक है। यक्ष स्पष्टतः कार्तिकेय के लक्षणों वाले हैं। उल्लेखनीय है कि दिगम्बर परम्परा में सम्भवनाथ के त्रिमुख यक्ष का वाहन मयूर बताया गया है । सम्भवतः मयूर व न के कारण ही यक्ष के साथ यहाँ कातिकेय के अन्य लक्षण भी दिखाए गये । जटामुकुट से शोभित अश्ववाहना चतुर्भुजा यक्षी के हाथों में अभय-मुद्रा, पद्म, पद्म और कलश प्रशित हैं। पार्श्वनाथ मन्दिर की इस मूर्ति के अतिरिक्त चार अन्य मूर्तियों में से केवल तीन में यक्ष-यक्षी निरूपित हैं। एक उदाहरण में (सा० शां० जै० क० सं०, क्रमांक के० ५०) सिंहासन के दोनों आर द्विभुज यक्षियों की आकृतियाँ बनी हैं जिनके एक हाथ में खड्ग है । पुरातात्विक संग्रहालय, खजुराहो (क्रमांक १७१५) की मूर्ति में द्विभुज यक्ष कुबेर हैं और उनके हाथों में कपाल और धन का थैला प्रदर्शित हैं। द्विभुज यक्षा के एक हाथ में पद्म है जब कि दूसरे से अभय-मुद्रा व्यक्त है। यह मूर्ति लगभग १०वीं शती ई० को है। एक उदाहरण में द्विभुज यक्ष के सुरक्षित बायें हाथ में फल है जबकि यज्ञो के करों में अभय-मुद्रा और पद्म प्रदर्शित हैं।
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