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________________ खजुराहो का जैन पुरातत्व सुरक्षित है । अष्टप्रातिहार्यों से युक्त ध्यानस्थ तीर्थंकर के साथ यक्ष-यक्षी का निरूपण नहीं हुआ है। सिंहासन के मध्य में जैन युगल की भी एक आकृति बनी है जो निश्चित ही कुंथुनाथ के माता-पिता की मूर्तियां हैं । पीठिका पर सात ग्रहों की भी मूर्तियां हैं। मुनिसुव्रत मुनिसुव्रत इस अवसर्पिणी के २०वें जिन हैं । इनका लांछन कूर्म और यक्ष-यक्षी वरुण एवं नरदत्ता (या बहुरूपिणी) हैं । खजुराहो में मुनिसुव्रत की केवल एक ही मूर्ति है । ल० ११वीं शती ई० की इस मूर्ति में पीठिका पर कूर्म लांछन बना है । यक्ष-यक्षी की आकृतियाँ नहीं बनी हैं। नेमिनाथ (या अरिष्टनेमि) नेमिनाथ या अरिष्टनेमि इस अवसर्पिणो के २२ वें तीर्थंकर है। द्वारावती के हरिवंशी शासक समुद्रविजय उनके पिता और शिवा देवी उनकी माता है। समुद्रविजय के अनुज वसुदेव की दो पत्नियाँ, रोहिणी और देवकी थीं जिनसे बलराम और कृष्ण उत्पन्न हुए। इस प्रकार कृष्ण एवं बलराम नेमिनाथ के चचेरे भाई हुए। नेमिनाथ का बलराम और कृष्ण से जुड़ना ब्राह्मण और जैन धर्मों के बीच सामंजस्य की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मूर्त अंकनों में भी मथुरा, देवगढ़, कुंभारिया, विमलवसही एव लूणवसही में नेमिनाथ के साथ बलराम और कृष्ण की आकृतियाँ बनी हैं। खजुराहो की मूर्तियों में नेमिनाथ के साथ इस परंपरा का निर्वाह नहीं हुआ है, यद्यपि विष्णु और बलराम की कई स्वतंत्र और शक्ति सहित आलिंगन मूर्तियाँ पार्श्वनाथ मन्दिर पर है। नेमिनाथ का लांछन शंख है और उनके यक्ष-यक्षी गोमेध एवं अंबिका (या कुष्माण्डी) हैं । यहाँ उल्लेखनीय है कि नेमिनाथ की मूर्तियों में यक्षी के रूप में सर्वदा अंबिका ही निरूपित हैं, पर यक्ष के रूप में त्रिमुख और षड्भुज गोमेध के स्थान पर सर्वानुभूति (या कुबेर) का अंकन हुआ है। खजुराहो में नेमिनाथ की तीन स्वतन्त्र मूर्तियाँ हैं। दो मूर्तियाँ क्रमशः मन्दिर १/१० और १२ में तथा एक सा० शां० ज० क० संग्रहालय (के० १४) में है । ११ वीं-१२ वीं शती ई० की ये मुर्तियाँ ध्यानमुद्रा में हैं । मन्दिर–१/१० की मूर्ति के अतिरिक्त अन्य सभी उदाहरणों में शंख लांछन स्पष्ट है । मन्दिर-१/१० की मूर्ति में यद्यपि लांछन स्पष्ट नहीं है, किन्तु सिंहासन पर अंबिका की मूर्ति है जिसके आधार पर नेमिनाथ से पहचान सम्भव है। यहाँ अंबिका की गोद में बालक प्रदर्शित है। द्विभुज यक्ष का दाहिना हाथ अभय-मुद्रा में है और बायां जांघ पर स्थित है। पीठिका पर नवग्रहों का भी अंकन हुआ है। सा० शां० जै० क० संग्रहालय (के० १४) की मूर्ति में यक्ष के हाथ में धन का थैला है और द्विभुजा अम्बिका के हाथों में आम्रलुम्बि और बालक हैं । मन्दिर-१/८ को एक त्रितीर्थी जिन मूर्ति में पार्श्वनाथ और महावीर के साथ ही शंख-लांछन से युक्त नेमिनाथ की भी कायोत्सर्ग आकृति बनी है। पार्श्वनाथ पार्श्वनाथ इस अवसर्पिणी के २३वें जिन हैं। इन्हें जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक भी माना जाता है। पार्श्वनाथ के चातुर्याम (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह) में महावीर ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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