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________________ १२ खजुराहो का जैन पुरातत्व की विविधता और सूक्ष्म उकेरन वाली नहीं है। साथ ही इन मूर्तियों की शारीरिक चेष्टा में एक स्थिरता प्राप्त होती है तथा इनका भाव प्रक्षेपण भी उतना सशक्त नहीं है। पार्श्वनाथ मन्दिर की तुलना में आकृतियाँ कुछ लम्बी और पतली भी दिखाई देती हैं। स्त्रियों का पृष्ठभाग स्वाभाविक उठाव और मांसल न होकर कुछ चिपटा दिखाई देता है । वक्ष गोल न होकर कुछ अण्डाकार है और नाभि अधिक गहरी काटी गयी है। स्त्री मूर्तियों में धोतियों का अलंकरण भी विविधता रहित है। स्त्री आकृतियाँ पूर्ववत् आकर्षक और मनमोहक मुद्राओं वाली हैं । अप्सरा मूर्तियों में शारीरिक भंगिमा अत्यन्त प्रखर और कुछ सीमा तक अस्वाभाविक रूप में दिखाई गई है। इनमें अधिकांशतः अप्सरायें एक हाथ से वक्ष का स्पर्श करती और दूसरे में पत्र-पुष्प या अन्य सामग्री लिए प्रदर्शित हैं। अन्य विषयों में बालक और शुक के साथ क्रीड़ा करती, पत्र लिखती, दपंण में देखकर केश संवारती या अंजन लगाती, दीवार पर चित्र बनाती, दर्पण में मुख देखकर आभूषण पहनती, पैर से काँटा निकालती, माला लिए, मेखला पहनती, अंगड़ाई लेती, वेणु-वादन एवं कन्दुक क्रीड़ा करती हुई मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं । नृत्यरत अप्सरा मूर्तियों के हाथों और पैरों की विभिन्न चेष्टाओं द्वारा नृत्य के भाव को बहुत ही गतिशील रूप में दर्शाया गया है। इस मन्दिर की अप्सरा मूर्तियाँ अधिकांशतः पृष्ठ और पार्श्वदर्शन वाली हैं जबकि पार्श्वनाथ की मूर्तियाँ समक्ष दर्शन वाली हैं । इन अप्सरा मूर्तियों में नारी सौन्दर्य, विशेषतः उनके सुन्दर अंगयष्टि, को शिल्पी ने विभिन्न कोणों से प्रस्तुत किया है । अप्सराओं में अंगड़ाई लेती हुई, उचककर दिवाल पर चित्र बनाती तथा मेखला पहनती हुई मूर्तियाँ विशेष आकर्षक हैं। आदिनाथ मन्दिर पर कुल ३७ व्याल मूर्तियाँ हैं जिनमें सामान्यतः व्याल के पीठ पर और पैरों के नीचे खड्ग या गदा या शूलधारी योद्धाओं की दो आकृतियाँ दिखायी गयी हैं। व्याल के समक्ष कभी-कभी मेष, शूकर, महिष, मयूर, ऊँट एवं गज की आकृतियाँ भी बनी हैं। ये व्याल मूर्तियाँ चन्देल शासकों की शौर्य की साकार अभिव्यक्ति हैं। व्याल आकृतियाँ सिंह, शूकर, शुक, गज, नर और अश्व व्यालों के रूप में हैं। इनमें सिंह व्याल की संख्या सर्वाधिक है। सबसे ऊपर की तीसरी पंक्ति में मालाधारो, वीणा बजाती, पुष्पधारी, नगाड़ा बजाती या वार्तालाप करती विद्याधरों की स्वतन्त्र और युगल मूर्तियाँ हैं। मन्दिर में तीन ओर के छज्जे में जैन आचार्यों की वार्तालाप करती हुई मूर्तियाँ भी हैं । मन्दिर क्रमांक १० इस मन्दिर के उत्तरंग पर लक्ष्मी, सरस्वती और सिद्धायिका के साथ ही अम्बिका की भी मूर्तियाँ हैं। उत्तरंग पर तीन देवियों, एक जैन युगल (स्त्री-पुरुष दोनों बालक लिए हुए) तथा मालाधारिणी और द्वारशाखाओं पर गंगा-यमुना की सवाहन तथा आलिंगनबद्ध युगलों की मूर्तियाँ है । इस मन्दिर में मूलनायक के रूप में विक्रम सम्वत् २०३७ (२५ जनवरी १९८१) की काले पत्थर की नमिनाथ की पद्म-लांछन वाली ध्यानस्थ मूर्ति है। इस मूर्ति के दक्षिण पार्श्व में नौ सर्पफणों के छत्रों वाली स्वस्तिक-लांछनयुक्त विक्रम सम्वत् १९२७ (१८७० ई०) की सुपार्श्वनाथ एवं बायीं ओर सात सर्पफणों के छत्र वाली सर्प-लांछनयुक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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