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खजुराहो की जैन कला
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आकर्षक मुद्राओं में अप्सराओं तथा व्यालों की भी मूर्तियाँ बनी हैं। मंडोवर की १६ रथिकाओं में १६ देवियों की मूर्तियाँ हैं । ललितमुद्रा में आसीन या त्रिभंग में खड़ी ये देवियाँ मूर्तिविज्ञान की दृष्टि से विशेष महत्व की हैं । स्वतन्त्र वाहनों एवं आयुधों वाली इन देवियों की सम्भावित पहचान १६ महाविद्याओं से की गई है। मन्दिर के अधिष्ठान पर क्षेत्रपाल ( दक्षिण), जैन यक्षी चक्रेश्वरी (उत्तर) और अम्बिका पश्चिम) की मूर्तियाँ हैं । आदिनाथ मन्दिर की द्वार-शाखाओं की चतुर्भुज देवियों की मूर्तियाँ भी मूर्तिविज्ञान की दृष्टि से विशेष महत्व की हैं। इनमें लक्ष्मी, चक्रेश्वरी, अम्बिका, पद्मावती, गौरी, काली, गांधारी एवं कुछ अन्य देवियों को वाहनों या बिना वाहनों वाला दिखाया गया है । उत्तरंग पर चक्रेश्वरी, अम्बिका एवं पद्मावती यक्षियों के अतिरिक्त लक्ष्मी भी आकारित हैं। मन्दिर के प्रवेशद्वार के दहलीज छोरों पर दो चतुर्भुज देवमूर्तियाँ बनी हैं जिनके सुरक्षित करों में अभयमुद्रा, परशु एवं चक्राकार पद्म प्रदर्शित हैं । दहलीज के बायें छोर पर गजलक्ष्मी और दाहिने छोर पर तीन सर्पफणों के छत्र वाली कूर्मवाहना देवी निरूपित हैं । ध्यानमुद्रा में विराजमान और एक सुरक्षित हाथ में पद्म से युक्त इस देवी को पहचान सम्भव नहीं है। द्वार-शाखाओं पर मकरवाहिनी गंगा और कूमवाहिनी यमुना की मूर्तियाँ भी उकेरी हैं।
प्रवेशद्वार के बड़ेरी पर १६ मांगलिक स्वप्नों का अंकन हुआ है। बायीं ओर आदिनाथ की माता को शय्या पर लेटे दिखाया गया है । इसके आगे स्त्री-पुरुष युगल की वार्तालाप-मुद्रा में मूर्तियाँ बनी हैं। यह निश्चित ही आदिनाथ के माता-पिता हैं जिन्हें शुभ स्वप्नों के प्रसंग में वार्ता करते दिखाया गया है । इसके बाद क्रम से १६ मांगलिक स्वप्न बने हैं।
___ आदिनाथ मन्दिर लगभग १ मीटर ऊँची जगती पर बना है। मन्दिर के अधिष्ठान के गोटे कई भिन्न-भिन्न स्तरों और अलंकरणों वाले हैं। अधिष्ठान के ऊपर जंघा या मडोवर का अलंकृत तथा शिल्प-सज्जित भाग है जिनमें निचली दो पंक्तियों में देवी-देवताओं तथा प्रक्षेपों पर अप्सराओं, नृत्यांगनाओं और व्यालों की मूर्तियाँ हैं । मन्दिर का शिखर सप्तरथ और षोडशभद्र है । कर्णरथों के ऊपर एक लघु स्तूपाकार शिखर है जिनमें दो पीढ़े, चन्द्रिकायें तथा आमलक है। इस परिधि के ऊपर एक बड़े आकार का आमलक, दो चन्द्रिकायें, एक छोटा आमलक, चन्द्रिका और कलश हैं । अन्तराल की छत तीन आलों की शृंखला से आच्छादित है । गर्भगृह का द्वार सात शाखाओं वाला है जिनमें पत्रलता, मन्दारमाला, वाद्य-वादन करती और नृत्यरत-गण आकृतियों, पत्रलताओं एवं वर्तुलाकार गुच्छ रचनाओं का अलंकरण है ।'
आदिनाथ मन्दिर पर पार्श्वनाथ मन्दिर के समान किसी देवता की शक्ति सहित युगल या आलिंगन मूर्ति नहीं है। पाश्वनाथ मन्दिर की अपेक्षा आदिनाथ मन्दिर की मूर्तियाँ जैन स्वरूप को अधिक प्रकट करती हैं। ये मूर्तियाँ पार्श्वनाथ मन्दिर की मूर्तियों की तुलना में अलंकरणों १. कृष्णदेव, जैन आर्ट एण्ड आकिटेक्चर (सं० ए० घोष), नई दिल्ली, १९७५, खण्ड-२,
पृ० २८८-९३; जैन, बलभद्र, पूर्व निविष्ट, पृ० १४६-४७; जन्नास, ई०, पूर्व निर्दिष्ट, पृ० १४४ ।
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