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खजुराहो का जैन पुरातत्त्व
१०३" ) की गज-लांछन और यक्ष-यक्षी तथा बायीं ओर जटाओं से शोभित वृषभ-लांछन वाली आदिनाथ (३'८" x १' २") की गोमुख यक्ष और चक्रेश्वरी यक्षी से सुशोभित मूर्तियाँ हैं । मन्दिर क्रमांक ७
__मन्दिर का प्रवेशद्वार अत्यधिक अलंकृत और प्रतिमाशास्त्र की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। मन्दिर के उत्तरंग पर लक्ष्मी, चक्रेश्वरी, अम्बिका और नवग्रहों के अतिरिक्त १८ जैन मुनियों तथा १६ माङ्गलिक स्वप्नों का भी अंकन हुआ है। जैन मनियों को सामान्यतः नमस्कार-मद्रा में मयूरपिच्छिका के साथ दिखाया गया है । ये आकृतियाँ ललाट-बिंब की सुपार्श्वनाथ मूर्ति के दोनों ओर बनी हैं और इनमें उनके नाम भी अभिलिखित हैं। गर्भगृह में महावोर की ध्यानस्थ मूर्ति (४' x २' २') है । विक्रम सम्वत् ११४८ ( १०९१ ई० ) की इस मूर्ति में यक्ष-यक्षी भी आमूर्तित हैं। सिंह-लांछन और यक्ष-यक्षी वाली महावीर की यह मूर्ति खजुराहो की अनुपम और साथ ही महावीर की सबसे सुन्दर, पूर्ण एवं सांगोपांग मूर्ति है। महावीर का अलंकृत प्रभामण्डल एवं अष्टप्रातिहार्य भी सुन्दर है । मूलनायक के मुख पर मन्दस्मित और गहन चिन्तन का भाव विशेष उल्लेखनीय है । अर्धनिमिलित नेत्र, तिखी ठुड्डी और श्रीवत्स भी दर्शनीय है । मन्दिर क्रमांक ८
मन्दिर के उत्तरंग पर चक्रेश्वरी एवं लक्ष्मी और गर्भगृह में तीर्थंकर आदिनाथ की मूर्ति (३'७" x २२') है। मन्दिर क्रमांक ९ (आदिनाथ मन्दिर)
पार्श्वनाथ मन्दिर के ठीक उत्तर में स्थित आदिनाथ मन्दिर खजुराहो के जैन मन्दिर समूह का एक महत्वपूर्ण मन्दिर है। यह मन्दिर प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। निरन्धार-प्रासाद-शैली के इस मन्दिर का वर्तमान में केवल शिखर युक्त गर्भगृह और अन्तराल ही शेष है । मन्दिर के मण्डप और अर्द्धमण्डप पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं और उनके स्थान पर गुम्बदाकार भीतरी छतों वाला एक नवीन प्रवेश-कक्ष बना दिया गया है । योजना, निर्माण शैली एवं मूर्तिकला की दृष्टि से आदिनाथ मन्दिर खजुराहो के वामन मन्दिर (ल० १०५०-७५ ई०) के निकट है। इस समानता के आधार पर कृष्णदेव ने आदिनाथ मन्दिर को ११वीं शती ई० के उत्तरार्द्ध में रखा है।' गर्भगृह में संवत् १२१५ (११५८ ई०) की काले पत्थर की आदिनाथ को मूर्ति (३'४" x ३' ५") प्रतिष्ठित है जो मूल प्रतिमा को हटाए जाने के बाद वहाँ रखी गई है । ललाटबिंब में ऋषभनाथ को यक्षो चक्रेश्वरी की मूर्ति बनी है ।
___ मन्दिर के मंडोवर पर मूर्तियों की तीन समानान्तर पंक्तियाँ हैं। ऊपर की पंक्ति में गन्धर्व, किन्नर और विद्याधरों की अत्यन्त गतिशील मूर्तियाँ हैं । मध्य की पंक्ति में चारों कोणों पर अष्टवासुकियों या गोमुखयक्ष की आठ चतुर्भुज गोमुख आकृतियाँ बनी हैं। निचली पक्ति में अष्ट-दिक्पालों की त्रिभंग में चतुर्भुज मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। नीचे की दो पंक्तियों में विभिन्न १. कृष्णदेव, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ५८ ।
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