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खजुराहो को जैन कला
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विक्रम सम्बत् १९२७ (१८७० ई०) की पार्श्वनाथ की काले पत्थर की खजुराहो गजरथ में प्रतिष्ठित ध्यानस्थ मूर्तियाँ हैं । मन्दिर क्रमांक ११/१-२ (पार्श्वनाथ-मन्दिर)
पार्श्वनाथ मन्दिर खजुराहो के जैन मन्दिरों में प्राचीनतम और सर्वाधिक सुरक्षित मन्दिर है । स्थापत्यगत योजना एवं मूर्ति अलंकरणों की दृष्टि से भी पार्श्वनाथ मन्दिर जैन मन्दिरों में विशालतम और सर्वोत्कृष्ट है । इस सांधार प्रासाद में छज्जेदार वातायनों से युक्त वक्र भागों का अभाव है। मन्दिर के प्रदक्षिणापथ में मन्द प्रकाश के संचार हेतु साधारण गवाक्ष बनाए गये हैं जिनसे होकर पहुँचने वाला मन्द प्रकाश दर्शनार्थियों एवं आराधकों के लिए एक अलौकिक शान्त वातावरण का सृजन करता है। पूर्वाभिमुख पार्श्वनाथ मन्दिर के पश्चिमी प्रक्षेप में गर्भगृह के पृष्ठभाग से जुड़ा एक स्वतन्त्र देवालय भी है ( वेदि नं० ११-२ ) जो इस मन्दिर की अभिनव विशेषता है । इस देवालय में ११वीं शती ई० की ऋषभनाथ की प्रतिमा ( ४२" x २६ ) प्रतिधित है। कृष्णदेव ने पार्श्वनाथ मन्दिर को धंग के शासनकाल के प्रारम्भिक दिनों (९५०-७० ई०) में निर्मित माना है।' खजुराहो के लक्ष्मण मन्दिर (९३०-५० ई०) एवं पाश्वनाथ मन्दिर में स्थापत्य एवं शिल्प की दृष्टि से पर्याप्त समानता है। दोनों ही मन्दिरों के गर्भगह-दार के उत्तरंग पर एक दूसरे के ऊपर दो रूप-पट्टिकायें बनी है। केवल लक्ष्मण और पार्श्वनाथ मन्दिरों पर ही कृष्णलीला के दृश्य तथा राम-सीता-हनुमान और बलराम-रेवती की मतियाँ है। दोनों मन्दिरों के यमलार्जुन दृश्यांकन में अत्यधिक समानता है ।
लक्ष्मण मन्दिर का निर्माण यशोवर्मन् द्वारा कराया गया जबकि पार्श्वनाथ मन्दिर उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी धंग के शासनकाल में बना। इस सूचना के स्रोत दो अभिलेख हैं जो लक्ष्मण और पार्श्वनाथ मन्दिरों में हैं । दोनों ही अभिलेख धंग के शासनकाल में लिखे गए थे और दोनों की तिथि-विक्रम संवत् १०११ (९५४ ई०) है। किन्तु दोनों अभिलेखों की लिपि में बहत अन्तर होने के कारण पार्श्वनाथ मन्दिर के अभिलेख को लुप्त मूल अभिलेख की प्रतिलिपि माना जाता है जिसे लगभग सौ वर्ष बाद फिर से लिखा गया। मन्दिर में कई पूर्ववर्ती तीर्थयात्री-लेख भी अंकित हैं जिन्हें लिपि के आधार ९५० से १००० ई० के मध्य का मान सकते हैं । पार्श्वनाथ मन्दिर का निर्माण पूर्ण दक्षता के साथ हुआ है । मन्दिर के मंडोवर पर तीन समानान्तर पंक्तियों में मूर्तियों के सुन्दर संयोजन और शिखर के सूक्ष्मांकन की फर्गसन ने अत्यधिक प्रशंसा की है । पार्श्वनाथ मन्दिर की वास्तुकला लक्ष्मण मन्दिर की अपेक्षा अधिक विकसित है। ऊर्ध्व पंक्ति में विद्याधरों का अंकन पार्श्वनाथ मन्दिर से ही प्रारम्भ हुआ। मन्दिर में अप्सराओं एवं सुर-सुन्दरियों की श्रेष्ठतम मूर्तियाँ हैं जो खजुराहो शिल्पी की सुन्दरतम कृतियाँ हैं।
१. कृष्णदेव, “दि टेम्पुल्स ऑव खजुराहो इन सेन्ट्रल इण्डिया", पृ० ५४ । २. वहीं, पृ० ५४-५५ । ३. अवस्थी, रामाश्रय, खजुराहो की देव प्रतिमायें, आगरा, १९६७, पृ० १५-१६ ।
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