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________________ खजुराहो को जैन कला १७ मन्दिर क्रमांक १/९ ___इस मन्दिर में मूलनायक महावीर (सिंह लांछन) सहित अनन्तनाथ (श्येन पक्षी) तथा विमलनाथ (शूकर) की लांछनयुक्त तीन ध्यानस्थ मूर्तियाँ है। संगमरमर में बनी परिकरविहीन ये मूर्तियाँ वर्ष १९८१ में स्थापित हुई हैं। मन्दिर क्रमांक १/१० इस मन्दिर में जैन युगल (तीर्थंकर के माता-पिता) मूर्ति (३' ४' x २' ६") का एक अत्यन्त सुन्दर उदाहरण सुरक्षित है। वेदि के ऊपर किसी तीर्थंकर के अभिषेक का विस्तृत अंकन दिखाया गया है। इस दृश्यांकन में गन्धर्वो, विद्याधरों तथा कलशधारी देवों की आकृतियों के साथ ही भूत, वर्तमान और भविष्य के २४-२४ जिनों को मिलाकर कुल ७२ जिनों की आकृतियां बनीं हैं। मन्दिर क्रमांक १/११ इस मन्दिर में वर्ष १९८१ स्थापित श्वेत संगमरमर की शान्तिनाथ, कुंथुनाथ एवं अरनाथ की पारम्परिक लांछनों वाली तीन खड्गासन मूर्तियाँ हैं। तीनों ही तीर्थंकरों का चक्रवर्ती होना इनके एक साथ निरूपित होने की दृष्टि से उल्लेख्य है । मन्दिर क्रमांक १/१२ मन्दिर का प्रवेशद्वार और अर्द्धमण्डप प्राचीन जैन मन्दिर का भाग है। इस मन्दिर का प्रवेशद्वार अत्यन्त कलापूर्ण है । इसके सिरदल पर १६ मांगलिक स्वप्न, तीर्थंकरों, नवग्रहों तथा नीचे के भाग में गंगा और यमुना की मनोहारी मूर्तियाँ बनी हैं । गर्भगृह में मूलनायक आदिनाथ की वृषभ लांछन वाली मूर्ति है, जिसके दाहिने पार्श्व में अरनाथ ( मत्स्य लांछन ) एवं बायें पार्श्व में पुनः आदिनाथ की ध्यानस्थ मूर्तियाँ हैं। श्वेत संगमरमर में बनी ये सभी तीर्थकर मूर्तियाँ १९८१ ई० में स्थापित हुई हैं। ललाटबिम्ब की ध्यानस्थ तीर्थंकर मूर्ति अनूठी है । दोनों पैर मोड़कर ध्यानमुद्रा में बैठी तीर्थंकर आकृति का बायाँ हाथ गोद में है, जबकि दाहिना हाथ पारम्परिक मुद्रा में न होकर जानु पर रखा है जिसमें पूर्ण विकसित पद्म दिखाया गया हैं। इस विचित्र तीर्थकर मूर्ति में त्रिछत्र, गन्धर्व एवं अशोक वृक्ष का अंकन हुआ है । मन्दिर क्रमांक १/१३ मन्दिर में चन्द्रप्रभ की ध्यानस्थ मूर्ति ( ३' ४' x २' ३" ) है। तीर्थंकर के साथ चन्द्र लांछन तथा यक्ष-यक्षी की आकृतियाँ निरूपित हैं। इस वेदि के दोनों ओर की दीवारें प्राचीन जैन मन्दिरों की बाह्य भित्ति का अवशिष्ट भाग हैं, जो मन्दिर संख्या १/१२ एवं १/१४ की बाह्य भित्तियाँ हैं । इनपर कई देवी-देवताओं की आकृतियाँ द्रष्टव्य हैं। इनमें ब्रह्माणी, यम, निऋति (निर्वस्त्र), अम्बिका, ईशान्, इन्द्र, गोमुख तथा अप्सराओं की स्वतन्त्र मूर्तियाँ महत्व की हैं। इस मन्दिर की पूर्वी दीवार पर विवस्त्रजघना अप्सरा, दिक्पाल तथा पद्मावतो यक्षी की मूर्तियाँ उकेरी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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