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खजुराहो का जैन पुरातत्त्व कायोत्सर्ग में अवस्थित जिनों के साथ यहाँ लांछन नहीं दिखाये गये हैं। इस मूर्ति के परिकर में पार्श्वनाथ की ध्यानस्थ मूर्ति भी बनी है। मन्दिर क्रमांक १/४
इस मन्दिर के उत्तरंग पर १६ मांगलिक स्वप्न और द्वारशाखाओं पर गंगा-यमुना की आकृतियाँ हैं। मूलनायक के रूप में नौ सर्पफणों के छत्र वाली पार्श्वनाथ की ध्यानस्थ मूर्ति स्थित है। संगमरमर में उकेरी यह मूर्ति विक्रम संवत् १९२७ ( ई० १८७० ) की है । इस मूर्ति के समीप ही पार्श्वनाथ और शान्तिनाथ की २० वीं शती ई० की काले संगमरमर की ध्यानस्थ मूर्तियाँ हैं। इन मूर्तियों के अतिरिक्त मन्दिर में पत्थर में बनी पार्श्वनाथ ( चार उदाहरण), चन्द्रप्रभ, आदिनाथ और अजितनाथ एवं धातु में बनीं आदिनाथ, शान्तिनाथ (दो उदाहरण) एवं पाश्वनाथ की छोटी-बड़ी मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। छतरपुर से प्राप्त मल्लिनाथ की कलश लांछन वाली एक खड्गासन मूर्ति के परिकर में २३ अन्य जिनों की आकृतियाँ भी दिखायी गयी हैं। मन्दिर क्रमांक १/५
इस मन्दिर में बाहुबली की २० वीं शती ई० की विशाल कायोत्सर्ग प्रतिमा (८' x २७" ) द्रष्टव्य है। मन्दिर क्रमांक १/६
मन्दिर में ऋषभनाथ की ११ वीं शती ई० की एक मनोज्ञ ध्यानस्थ मूर्ति ( ४'७'x २'६" ) सुरक्षित है। कन्धों को छूती हुई लटों, वृषभ लांछन एवं यक्ष-यक्षी युक्त इस मूर्ति में नवग्रह भी बने हैं । यक्ष-यक्षी के रूप में सर्वाल और चक्रेश्वरी निरूपित हैं । ऋषभनाथ के जटामुकुट की बनावट बहुत सुन्दर और कई गुच्छकों के रूप में बनी है। सिंहासन के ऊपर अलंकृत आसन और उलटा पद्म तथा प्रभामण्डल भी मनोहारी है। मुख पर चिन्तन का भाव और कन्धों पर लटकती जटाएँ देवत्व का पूरा आभास कराती हैं। वेदि के ऊपर किसी प्राचीन जन मन्दिर के द्वार का ऊपरी भाग सुरक्षित है जिसमें सुपाश्वनाथ सहित १५ जिन आकृतियाँ बनी हैं। मन्दिर क्रमांक १/७
इस मन्दिर के प्रवेशद्वार के सिरदल पर तीथंकरों की ध्यानस्थ और नीचे गंगा और यमुना की मूर्तियाँ हैं। मूलनायक के रूप में कपिलांछन से युक्त अभिनन्दन की मूर्ति विराजमान है जिसके दाहिने पावं में अश्वलांछन वाले सम्भवनाथ तथा चकवालांछन वाले सुमतिनाथ की स्वतन्त्र मूर्तियाँ हैं । संगमरमर में उकेरी ये सभी ध्यानस्थ मूर्तियाँ १९८१ ई० में स्थापित हुई हैं। मन्दिर क्रमांक १/८
इस मन्दिर में नेमिनाथ की काले पत्थर की सम्वत् १९४३ (ई० १८८६) की ध्यानस्थ मूर्ति है । यह मूर्ति चार अष्टकोणीय प्राचीरों वाले मेरु मन्दिर में स्थित है जिसकी जालीनुमा दीवारें अत्यन्त अलंकृत हैं।
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