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खजुराहो की जैन कला
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द्वारों पर मकरवाहिनी गंगा और कुमवाहिनी यमुना की स्थानक मूर्तियाँ भी मन्दिर निर्माण की सामान्य विशेषता के अनुरूप हैं ।
यहाँ खजुराहो के जैन मन्दिरों तथा मूर्तियों का संक्षेप में अलग-अलग उल्लेख आवश्यक है ।
मन्दिर क्रमांक १/१ (शांतिनाथ मन्दिर )
पार्श्वनाथ मन्दिर के समीप ही दक्षिण की ओर एक अलग छोटी चहारदीवारी में शांतिनाथ मन्दिर सहित कुल १६ मन्दिर हैं जिनका निर्माण अधिकांशतः प्राचीन जैन मन्दिरों और मूर्तियों के अवशेषों से किया गया है। इन मन्दिरों का क्रमांक (आगे से क्र०) १ (शांतिनाथ ) से १६ ( आदिनाथ ) है । शांतिनाथ मन्दिर में शांतिनाथ की १२ फीट ऊँची खड्गासन मूर्ति है । यह तीर्थंकर प्रतिमा खजुराहो की समस्त देव प्रतिमाओं में विशालतम और सांगोपांग प्रतिमा है । मूलनायक के दोनों हाथों में पूर्ण विकसित पद्म हैं और सौम्यमुख पर गहन चिन्तन का भाव व्यक्त है । शांतिनाथ के दोनों ओर पार्श्वनाथ ( ३' ५' x १' ११ ) की तथा परिकर में अन्य जिनों की आकृतियाँ बनीं हैं । चमकदार आलेप से युक्त शांतिनाथ की विशाल प्रतिमा मनोज्ञ और अनुपातिक अंग योजना वाली है । अलंकृत प्रभामण्डल से युक्त मूर्ति में एक योगी की तपश्चर्या और चिन्तन के भाव को सुन्दर ढंग से प्रदर्शित किया गया है । संवत् १०८५ ( = १०२८ ई०) के लेख से युक्त इस मूर्ति के समीप ही दीवारों में पार्श्वनाथ, ऋषभनाथ ( २' १० " x १' ८' ) और महावीर तथा कुछ अन्य तीर्थंकरों की ११वीं शती ई० की मूर्तियाँ भी सुरक्षित हैं । पार्श्वनाथ के सिर पर सर्प फणों का फैलाव और उनके बैठने का शांत भाव सुन्दर है । इस मूर्ति के परिकर में बाहुबली की भी मूर्ति बनी है । मन्दिर के प्रवेशद्वार पर गंगा-यमुना और समीप ही क्षेत्रपाल ( २' x १' ३ ' ) की मूर्तियाँ हैं । क्षेत्रपाल की मूर्ति में रौद्र भाव के स्थान पर मुख पर सौम्य भाव है और शारीरिक चेष्टाओं से नृत्य की लयात्मकता पूरी तरह अभिव्यक्त है ।
मन्दिर क्रमांक १/२
इस मन्दिर के प्रवेशद्वार पर गंगा और यमुना की बिना वाहन वाली एवं नृत्यरत पुरुषों की ६ आकृतियाँ और गर्भगृह में द्वितीर्थो जिनों की कायोत्सर्ग मूर्ति (४' x २ ) है । मन्दिर क्रमांक १ / ३
इस मन्दिर में मूलनायक के रूप में पार्श्वनाथ की सात सपफणों के छत्र वाली कायोत्सगं ( ४' ४ " × १' ११” ) मूर्ति है । इस मनोज्ञ मूर्ति में शरीर रचना इकहरी और सुन्दर है । पार्श्वनाथ के दक्षिण पार्श्व में बिल्हारी से प्राप्त एक द्वितीर्थी जिन मूर्ति प्रतिष्ठित है । इस मूर्ति में ऋषभनाथ और चन्द्रप्रभ की क्रमशः वृषभ और चन्द्र लांछनों वाली कायोत्सर्ग आकृतियाँ बनी हैं । दोनों ही तीर्थंकरों के साथ चतुर्भुज यक्ष-यक्षी निरूपित हैं, जिनके करों में अभयमुद्रा, पद्म, पुस्तक और जलपात्र हैं । मूलनायक के बायीं ओर भी एक द्वितीर्थी जिन मूर्ति अवस्थित है ।
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