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खजुराहो का जैन पुरातत्त्व मन्दिरों के गर्भगृह, जंघा एवं कुछ अन्य भागों पर बनी हैं। दूसरे वर्ग में परिवार या पावं देवताओं की मूर्तियाँ आती हैं, जो मुख्यतः मन्दिरों की जंघा, रथिकाओं एवं प्रवेश-द्वारों पर बनी हैं । इनमें दिक्पाल, यक्ष-यक्षियों, गंगा-यमुना, कात्तिकेय एवं गणों आदि की मूर्तियाँ हैं । तीसरे वर्ग में अप्सरा या मदनिका मूर्तियां आती हैं, जिनकी संख्या बहुत अधिक है । मनमोहक मुद्राओं, सुन्दर वस्त्राभूषणों के अलंकरण तथा आकर्षक शारीरिक रचना के कारण ये मूर्तियाँ खजुराहो कला की सर्वोत्तम मूर्तियां मानी जाती है । ये अप्सराएँ अपने को विवस्त्र करती (विवृतजधना), अंगड़ाई लेती, अपने पृष्ठभाग को नखों से खरोचती, पयोधरों का स्पर्श करती, वेणियों से जल निचोड़ती, पैरों से काँटा निकालती, शिशु को दुलारती ( पुत्रवल्लभा ), पालित पशु-पक्षियों, जैसे शुक और वानर के साथ क्रीड़ा करती, पत्र लिखती, वीणा अथवा वंशी बजाती, दीवारों पर चित्रांकन करती या पैरों में महावर रचाती, नूपुर बँधवाती, नेत्रों में सुरमा अथवा काजल लगाती एवं दर्पण में मुख देखती ( दर्पणा ) हुई प्रदर्शित हैं। इनमें भारतीय साहित्य में वर्णित विभिन्न नायिकाओं के मूर्त रूप देखने को मिलते हैं।
___ खजुराहों में विभिन्न मनमोहक मुद्राओं वाली अप्सरा मूर्तियों के साथ ही सामान्य आलिंगनबद्ध स्त्री-पुरुष युगलों के चुम्बन और आलिंगन से सम्बन्धित अनेक मूर्तियां भी हैं । स्त्रीपुरुष युगलों को रतिक्रिया में संलग्न मूर्तियों के अनेक उदाहरण लक्ष्मण, विश्वनाथ, कन्दरिया महादेव तथा चित्रगुप्त मन्दिरों एवं कुछ उदाहरण पार्श्वनाथ मन्दिर पर है । खजुराहो के ब्राह्मण मन्दिरों में कामक्रिया के असामान्य या उद्दाम अंकन भी हैं, जिनमें युगलों या दो से अधिक लोगों के सामूहिक रतिक्रिया को असामान्य स्तर पर दर्शाया गया है । ऐसी मूर्तियाँ मुख्य रूप से कन्दरिया महादेव और लक्ष्मण मन्दिरों पर हैं। अगले वर्ग में अत्यधिक अस्वाभाविक स्तर के मनुष्य और पशु के काम सम्बन्धी अंकन आते हैं, जिनमें श्वान्, मृग, गर्दभ, अश्व आदि के साथ मनुष्य के समागम दृश्य हैं । ऐसी मूर्तियाँ मुख्यतः विश्वनाथ, लक्ष्मण और कन्दरिया महादेव मन्दिरों पर है।
चौथे वर्ग में रामायण, महाभारत एवं कृष्णलीला के दृश्यांकन तथा सामान्य जनजीवन के विविध पक्षों के अंकन आते हैं । रामायण और महाभारत के अंकन लक्ष्मण, पार्श्वनाथ एवं कन्दरिया महादेव मन्दिरों पर है। युद्ध, आखेट, नृत्य, संगीत, गुरु-शिष्य, कार्यरत श्रमिक तथा विभिन्त पारिवारिक दृश्यों के अंकन न्यूनाधिक लगभग सभी मन्दिरों पर उत्कीर्ण हैं। ये दृश्य तत्कालोन जीवन की बहुमुखी झाँकी प्रस्तुत करते हैं। लक्ष्मण मन्दिर के जीवन्त युद्ध दृश्यों में युद्ध की स्थितियों तथा उसकी विभीषिका और साथ ही युद्ध में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों का अंकन हुआ है । पांचवें वर्ग में पशु-पक्षियों की मूर्तियाँ आती हैं, जिनमें शार्दूल ( या व्याल या वराल या विराल ) सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं । शार्दूल कला में अभिव्यक्त एक कल्पित पशु है, जिसे मुख्यतः शृंगों वाले सिंह के रूप में दर्शाया गया है । खजुराहो की मूर्तियों में गज, अश्व, मत्स्य, शुक, वराह एवं नर-व्यालों के रूप में इनका अंकन हुआ है । अन्तिम वर्ग में वानस्पतिक जगत् तथा भारतीय परम्परा में प्रचलित स्वस्तिक, पद्म, नन्द्यावर्त जैसे प्रतीक आते हैं।
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