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________________ प्रस्तावना इस प्रकार खजुराहो की मूर्तिकला में पूर्व मध्यकालीन मध्य भारत का सम्पूर्ण जीवन मूर्तिमान दिखाई देता है । इनमें युद्ध, आखेट, संगीत, नृत्य, शिक्षा, प्रसाधन आदि से सम्बन्धित अनेक दृश्य देखने को मिलते हैं। खजुराहो की बहुसंख्यक मूर्तियों में इहलोक तथा परलोक की अनेक मनोरम भावनायें साकार रूप में प्रकट हुई हैं। यहाँ के कलाकारों ने प्रकृति और मानव जीवन के शृंगारिक तथा आनन्दमय पक्ष को शाश्वत् रूप देने का प्रयास किया है। शिल्प शृंगार का इतना समृद्ध और व्यापक रूप सम्भवतः भारत के अन्य किसी कलाकेन्द्र पर देखने को नहीं मिलता। प्रतिमा-विज्ञान खजुराहो मन्दिरों की मूर्तियाँ प्रतिमाविज्ञान की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं । यहाँ ब्राह्मण और जैन धर्मों से सम्बन्धित देव-मूर्तियों के विविध रूपों के दर्शन होते हैं। शिव की विभिन्न सौम्य, और संहारक मूर्तियों के अतिरिक्त उनकी नटराज तथा संयुक्त मूर्तियां भी हैं। इसी प्रकार शैव परिवार के गणेश और कात्तिकेय की भी पर्याप्त मूर्तियाँ हैं । शक्ति के विविध रूपों में महिषमर्दिनी, काली, चामुण्डा, पार्वती और सप्त-मातृकाओं की मूर्तियाँ मुख्य हैं। वैष्णव मूर्तियों में विष्णु की स्वतन्त्र स्थानक, आसन तथा शेषशायी रूपों की प्रचुर मूर्तियाँ हैं । साथ ही विष्णु के मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन (त्रिविक्रम), राम, परशुराम, बलराम और कृष्ण (या बुद्ध) आदि अवतार-स्वरूपों तथा लक्ष्मी नारायण स्वरूप की भी अनेक मूर्तियाँ बनीं। इनके अतिरिक्त सूर्य, ब्रह्मा, सरस्वती और गज-लक्ष्मी को भी पर्याप्त मूर्तियाँ है । ये मूर्तियाँ लगभग सभी मन्दिरों पर न्यूनाधिक संख्या में आकारित हैं। पार्श्वनाथ जैन मन्दिर पर राम, शिव, विष्णु, ब्रह्मा, बलराम एवं काम आदि ब्राह्मण देवों की स्वतन्त्र एवं शक्ति-सहित आलिंगन मूर्तियाँ विशेष महत्व की है। इनसे खजुराहो में ब्राह्मण और जैन सम्प्रदायों के बीच के सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध प्रकट होते हैं । लक्ष्मण, कन्दरिया महादेव, पार्श्वनाथ एवं अन्य मन्दिरों पर विभिन्न देव युगलों की आलिंगन मूर्तियों में देवताओं की शक्तियों को सामान्य लक्षणों वाला, विशिष्टतारहित तथा द्विभुज दर्शाया गया है। उनके साथ पारम्परिक वाहनों एवं आयुधों का प्रदर्शन नहीं हुआ है। जंघा की स्वतन्त्र तथा शक्ति सहित आलिंगन देव-मूर्तियाँ सामान्यतः त्रिभंग में निरूपित हैं । प्रतिमाविज्ञान की दृष्टि से खजुराहो में कुछ दुर्लभ मूर्तियाँ भी बनों, जिनमें शंख, चक्र और पद्म पुरुष; विष्णु के हयग्रीव, वैकुण्ठ, अनन्त तथा विश्वरूप; नारसिंही, गोधासना पार्वती एवं सिंहवाहना गजलक्ष्मी की मूर्तियाँ महत्व की हैं । संघाट या समन्वित मूर्ति निर्माण की परम्परा भी खजुराहो में लोकप्रिय थी जिसके फलस्वरूप हरिहर, अर्द्धनारीश्वर, हरिहरपितामह (दत्तात्रेय), सूर्यनारायण, हरिहरहिरण्यगर्भ की अनेक मूर्तियाँ बनीं। इनके अतिरिक्त गौण देवताओं का भी अनेकशः निरूपण हुआ। इनमें अष्टदिक्पाल, नवग्रह, अष्टवसु, गन्धर्व, नाग एवं विद्याधर मूर्तियाँ मुख्य हैं। इनका अंकन सभी मन्दिरों पर हुआ है । मन्दिरों के अर्द्धमण्डप और गर्भगृह के ललाटबिम्ब में गर्भगृहों में प्रतिष्ठित मुख्य देवता या उसके किसी प्रमुख स्वरूप की छोटी मूर्ति आकारित हैं। द्वार-शाखाओं पर गंगा-यमुना और मन्दिरों की जंघा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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