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परिशिष्ट
(११५८ई०), १२२० (११६३ ई.) एवं १२३४ (११७७ ई.) के हैं ।' सम्वत् १०८५ का लेख शान्तिनाथ मन्दिर के विशाल शान्तिनाथ प्रतिमा तथा सम्वत् १२१५ का लेख मन्दिर १३ की सम्भवनाथ प्रतिमा पर है। इन लेखों में चन्देल शासक बंग और मदनवर्मन् के नामोल्लेख है। उपर्युक्न लेखों के अतिरिक्त मूर्तियों तथा मन्दिरों (मन्दिर ७) पर कई बिना तिथि वाले लेख भी है । खजुराहो के जैन लेख कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं। इन लेखों में जैन धर्म और कला को समर्थन देने वाले श्रेष्ठियों, जैन आचार्यों एवं मुनियों तथा शिल्पियों (रूपकारों) के नामोल्लेख विशेष महत्त्व के हैं। ये लेख १० वीं शती ई० के उत्तराद्धं से ल. १२ वीं शती ई० के मध्य तक खजुराहो में जैन धर्म और संघ के प्रभावशाली रहे होने की पुष्टि करते हैं । इन लेखों में धंग के महाराज गुरु वासवचन्द्र (पार्श्वनाथ मन्दिर लेख) तथा देवचन्द्र, कुमुदचन्द्र, चारुकोति, कुमारनन्दी, योगचन्द्र, योगनन्दी, यक्षदेव, विशालकीति जैसे अन्य निर्ग्रन्थ दिगम्बर जैन आचार्यों एवं साधुओं के उल्लेख हैं । ये उल्लेख स्पष्टतः खजुराहो में संगठित जैन संघ की विद्यमानता का संकेत देते हैं। साथ हो श्रेष्ठि पाहिल, पाणिधर तथा उसके पुत्रों त्रिविक्रम, आल्हण ओर लक्ष्मीधर; महीपति और उसके पुत्रों साल्हू, देदू, आल्हू, बीबतसाह और उनकी पत्नी पद्मावती; श्रेष्ठि देदू एवं उनके पुत्र पाहिल' तथा उनके पुत्र साल्हे और उनके पुत्रों महागण, महीचन्द्र, श्रीचन्द्र, जिनचन्द्र और उदयचन्द्र आदि के नामोल्लेख उस क्षेत्र में जैन धर्मावलम्बी श्रेष्ठि परिवार के संगठन तथा जैन मन्दिर एवं मूर्ति निर्माण में उनके सहयोग को स्पष्ट करते हैं । ये श्रेष्ठि ग्रहपति (या गृहपति-गहोई) वंश के थे । इन लेखों में कुछ शिल्पियों के नामोल्लेख भी महत्व के हैं, जिनमें रामदेव, धुजु, कुमारसिंह, माहुल, गोलल, देवशर्मा, जयसिंह तथा पोषन आदि उल्लेखनीय है।
पार्श्वनाथ मन्दिर का लेख यह भी सूचना देता है कि मन्दिरों की व्यवस्था आदि के लिए भूमि तथा वाटिकाओं के दान की परम्परा थी। पाहिल ने पार्श्वनाथ मन्दिर के पूजन तथा १. एपिप्राफिया इण्डिका, खण्ड-१, पृ० १५२-५३; जैन, बलभद्र, भारत के दिगम्बर जैन
तीर्थ, तृतीय भाग (मध्य प्रदेश), बम्बई, १९७६, पृ० १४५-४६ । यहाँ के मूर्ति लेखों में
अन्तिम लेख सम्वत् १२३४ का है। २. ११५८ ई० के लेख में उल्लिखित पाहिल पार्श्वनाथ मन्दिर के पूर्वोक्त ९५४ ई० के लेख ___ में आये पाहिल से भिन्न व्यक्ति है क्योंकि दोनों के बीच दो सौ वर्षों से अधिक का अन्तर
है । जैन, ज्योति प्रसाद, पूर्व निविष्ट, पृ० २२७ । ३. जैन, बलभद्र, पूर्व निविष्ट, पृ० १४२, १४६; एपिग्राफिया इण्डिका, खण्ड १, पृ० १५३,
जैन, ज्योति प्रसाद, पूर्व निविष्ट, पृ० २२४-२६ ।
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