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खजुराहो का जैन पुरातत्व व्यवस्था के लिए सात वाटिकाओं का दान किया था ।' पार्श्वनाथ मन्दिर के लेख में मन्दिर के निर्माणकर्ता पाहिल के धंगराज द्वारा सम्मानित किये जाने का उल्लेख भी महत्वपूर्ण है। इस लेख में ऋषभनाथ को "जिननाथ" कहा गया है । १-पाश्वनाथ मन्दिर लेख :
१-ओं (*) सम्वत् १०११ समये ॥ निजकुलधवलोयं दि२-व्यमूत्ति स्वसी (शी) ल स (श) मदमगुणयुक्त सन्द३-सत्वा (त्ता) नुकंपी (*) स्वजनजनिततोषो धांगराजेन ४-मान्य प्रणमति जिननाथोयं भव्यपाहिल५-नामा । (u) ? ॥ पाहिलवाटिका १ चन्द्रवाटिका २ ६-लघुचन्द्रवाटिका ३ सं (शं) करवाटिका ४ पंचाई७-तलवाटिका ५ आम्रवाटिका ६ ध (ध) गवाडी ७ (॥*) ८-पाहिलवंसे (शे) तु क्षये क्षीणे अपरवंसो (शो) यः कोपि ९-तिष्ठति (1*) तस्य दासस्य दासोयं ममदतिस्तु पाल१०-येत् ॥ महाराजगुरु स्री (श्री) वासवचन्द्र (I*) (वैसा) (शा) (ष) (ख) ११-सुदि ७ सोमदिने ॥
(एपिग्राफिया इण्डिका,खं १, पृ० १३५-३६ ) २-अन्य लेख
(ग्र*) हपत्यन्वये श्रेष्ठि श्रीपाणिधर (1*) ३–ओं ॥ ग्रहपत्यन्वये श्रेष्ठिपाणिधरस्तस्य सुत श्रेष्ठिति (त्रि) विक्रम तथा आल्हण ।
लक्ष्मीधर ।। सम्वत् १२०५ । माघवदि ५ ॥ ४–ओं । सम्वत् १२१५ माघसुदि ५ श्रीमन्मदनवर्मदेव प्रवर्द्धमानविजयराज्ये ।।
ग्रहपतिवंसे (शे) श्रेष्ठिदेदू तत्पुत्रपाहिल्लः । पाहिल्लांगरूहसाधुसाल्हे (ते) नेदं (यं) प्रतिमाकारितेति ।। ॥ तत्पुत्राः महागण । महीचन्द्र । सि (रि) चन्द्र । जिनचन्द्र । उदयचन्द्र प्रभृति । सम्भवनाथं प्रणमति नित्यं ॥ मंग (लं) महाश्री (:*) ॥ रूपकार रामदेव (:*)॥
(एपिग्राफिया इण्डिका, खं० १, पृ० १५२-५३) १. पाहिल, चन्द्र, लघुचन्द्र, शंकर, पंचाइतल (पंचायतन), आम्र एवं धंग वाटिकाएँ । २. पाश्र्वनाथ मन्दिर के लेख की लिपि बाद की है । सं० १०११ के प्राचीन लेख को १३वों
शती ई० में पुनः आलेखित किया गया था । एपिग्राफिया इण्डिका, खण्ड-१ (कोलहानइन्स्क्रिप्शन्स फ्राम खजुराहो), पृ० १३५-३६.
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