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खजुराहो का जैन पुरातत्व
कुछ उदाहरणों में वृत्त के मध्य में केवल अश्व की ही आकृति बनी है।' सूर्य उदीच्य वेषधारी तथा उस्फूटिकासन में दोनों हाथों में सनाल पद्म से युक्त हैं । सूर्य के आगे मत्स्य युगल, कलशद्वय तथा पुष्पालंकृत दिव्य झीलर एवं उद्वेलित समुद्र का अंकन हुआ है । उद्वेलित समुद्र को एक वृत्त के रूप में दर्शाया गया है जिसमें नक, कूर्म, मत्स्य, हंस आदि जलचरों का अंकन हुआ है । मन्दिर ७ के उदाहरण में मध्य में समुद्र की मानव आकृति भी बनी है । इनमें समुद्र अभयमुद्रा और फल (या जलपात्र) से युक्त हैं । आगे सिंहासन, दिव्यविमान, नागेन्द्र भवन, अपार रलराशि और निर्धूम अग्नि उकेरित हैं । धर्मचक्र और दो सिंहों से युक्त सिंहासन के समीप ही दिव्य विमान अंकित है। दिव्यविमान के ऊपर अभयमुद्रा और जलपात्र से युक्त एक आकृति बैठी है। नागेन्द्र भवन में तीन सर्पफणों के छत्र से युक्त नाग
और नागी की युगल आकृतियाँ दिखाई गई हैं और उनके हाथों में अभयमुद्रा और जलपात्र (या फल) है । अपार रत्नराशि के समीप ही अग्नि की मानव आकृति बनी है । श्मश्रु तथा जटामुकुट से शोभित ललितासीन अग्नि के हाथों में अभयमुद्रा और झुक प्रदर्शित हैं । यह निर्धूम अग्नि का अंकन है। खजुराहो में मांगलिक स्वप्नों के अंकन की एक विशेषता यह थी कि इनमें विभिन्न स्वप्नों का प्रतीक के स्थान पर मानवरूप में अंकन अधिक लोकप्रिय था। जैनों ने मांगलिक स्वप्नों की सूची निर्धारित करते समय उनमें न केवल प्रचलित मांगलिक चिह्नों (मत्स्य युगल, कलश) एवं प्रमुख प्राकृतिक तत्वों (सूर्य, चन्द्र, जल) तथा लोकदेवों (अभिषेकलक्ष्मी, नाग, अग्नि) को हो सम्मिलित किया, वरन् पशु जगत् (गज, वृषभ, सिंह) तथा अष्टप्रातिहार्यों की सूची में से सिंहासन को भी सम्मिलित किया। इस प्रकार मागलिक स्वप्नों की कल्पना में जैनों ने सम्पूर्ण जगत को प्रतिनिधित्व दिया। इन स्वप्नों के शिल्पांकन में खजुराहो में कलाकारों ने उनके प्रतीकात्मक अंकन के स्थान पर उनके यथार्थ रूप को दर्शाने का यल किया है। यह भाव समुद्र में विभिन्न जलचरों तथा दिव्य झील में पद्म के अंकन से स्पष्ट है।
(ग) जैन लेख यहाँ का प्रारम्भिकतम जैन लेख विक्रम सम्वत् १०११ ( ९५४-५५ ई० ) का है, जो पार्श्वनाथ मन्दिर में उत्कीर्ण है । इस लेख के अतिरिक्त अन्य कई मूर्ति लेख भी हैं, जो क्रमशः विक्रम सम्वत् १०८५ (१०२८ ई०), १२०५ (११४८ ई०), १२१२ (११५५ ई०), १२१५
१. मन्दिर ७ के उदाहरण में वृत्त के मध्य में सम्भवतः मृग की आकृति बनी है । २. मन्दिर ७ के उदाहरण में पक्षियों की दो आकृतियाँ हैं । ३. एपिप्राफिया इण्डिका, खण्ड-१, पृ० १३५-३६ ।
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