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साहू शान्ति प्रसाद जैन कला संग्रहालय, खजुराहो (क्र. २९०, ११ वीं शती ई०) देवी अतिभंग में खड़ी हैं और उनके करों में वरदमुद्रा, पम, पन एवं जलपात्र हैं।
कक्ष ८ : चक्रेश्वरी यक्षी (११वीं शती ई०) : यह मूर्ति बीस हाथों वाली है किन्तु वर्तमान में सभी हाथ खण्डित हैं। यक्षी के शीर्ष भाग में जटायुक्त ऋषभनाथ की मूर्ति देखी जा सकती है।
गान्धारी (११वीं शती ई०) : ललितासीन देवी के आसन के समीप मकरमुख बना है और देवी के करों में अभयमुद्रा, पद्म, पद्म और जलपात्र हैं ।
गान्धारी (क्र० २८४, ११वीं शती ई०) : यह मूर्ति अत्यधिक अलंकृत और भव्य है । त्रिभंग में अवस्थित देवी के दाहिने पार्श्व में मकरमुख बना हैं और उसके हाथों में वरदमुद्रा, पन, पद्म-पुस्तक एवं जलपात्र प्रदर्शित हैं। इस मूर्ति के ऊपरी परिकर में पद्मधारिणी दो चतुर्भुजा देवियां भी दिखायी गयी हैं।
पद्मावती (१२ वीं-१२वीं शती ई०): यह मूर्ति कलात्मक स्तर पर बहुत सुन्दर न होते हुये भी प्रतिमालक्षण की दृष्टि से महत्त्व की है। पार्श्ववर्ती चामरधारिणो सेविकाओं से वेष्ठित देवी त्रिभंग में हैं और उनके सिर पर पांच सर्पफणों का छत्र है। देवी के हाथों में वरदाक्ष, पद्म, पद्म एवं फल प्रदर्शित हैं ।
चक्रधरी (क्र० ८५, १०वीं शती ई०) : वास्तव में यह किसी विशाल तीर्थकर मूर्ति की पीठिका वाला भाग है जिस पर द्वादशभुजी चक्रेश्वरी (२'४" x २२") का अंकन हुआ है । यद्यपि चक्रेश्वरी के सभी हाथ खण्डित है किन्तु गरुडवाहन एवं मस्तक पर किरीटमुकुट तथा पीठिका पर सबमे नीचे उत्कीर्ण वृषभ-लांछन के आधार पर मूल प्रतिमा का ऋषभनाथ की मूर्ति होना सर्वथा निश्चित है जिनकी यक्षी के रूप में चक्रेश्वरी का अंकन पूरी तरह परम्परासम्मत है ।
यक्ष (क्र० २५१, संग्रहालय में अजितयक्ष ?) : यह बैकेट मूर्ति है जिसमें चतुर्भुज यक्ष के दो हाथों में पद्म और कलश हैं।
__मातंग यक्ष-ललितासीन यक्ष घटोदर एवं गजवाहन वाले हैं। इनके दो हाथों में बीजपूरक और नकुलक हैं ।
कक्ष ९ : इस कक्ष में केवल नेमिनाथ की यक्षी अम्बिका की दसवीं से तेरहवीं ई० के मध्य की पांच मूर्तियाँ सुरक्षित हैं-१. चतुर्भुजा अम्बिका ललितासीन और सिंहवाहन से युक्त हैं (क्र० २२३, १० वीं शती ई.)। देवी के दो हाथों में आम्रलुम्बि और बालक दिखाया गया है। २. (क्र० १९१, १३ वीं शती ई०) त्रिभंग में खड़ी यक्षी के करों में आम्रलुम्बि, अंकुश, पाश एवं बालक (प्रियंकर) प्रदर्शित हैं । पीठिका पर देवी का सिंहवाहन और आम्रलुम्बि के नीचे बड़े पुत्र शुभंकर को दिखाया गया है। ३. १० वीं शती ई० की तीसरी मूर्ति (४४' x १'३") में देवी के सभी हाथ यद्यपि खण्डित है किन्तु दोनों ओर बालकों की आकृति तथा बायीं ओर सिंहवाहन स्पष्टतः देखा जा सकता है । यह मूर्ति विशेष अलंकृत मूर्ति है। देवी की साड़ी तथा किरीटमुकुट अलंकरण की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं । शीर्ष भाग में आम्रवृक्ष तथा परिकर में चतुर्भुज। चक्रेश्वरी एवं तीन तीर्थंकरों की आकृतियाँ बनी हैं । मध्य की तीर्थकर
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