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खजुराहो का जैन पुरातत्त्व ऋषभनाथ (क्र० १०३, ११वीं शती ई०) : इस ध्यानस्थ मूर्ति (५'१" x ३'१") में वृषभ-लांछन और चतुर्भुज गोमुख यक्ष एवं गरुडवाहना चक्रेश्वरी की आकृतियाँ बनी हैं । कन्धों को छूती हुयी लटों से शोभित ऋषभनाथ की केश रचना छोटे-छोटे गुच्छकों के रूप में प्रदर्शित है । अत्यधिक अलंकृत प्रभामण्डल एवं आसन विशेषतः दर्शनीय हैं।
पार्श्वनाथ (क्र० १९३, प्रारम्भिक ११वीं शती ई०) : इस मूर्ति (३५" x २'६' ) में ध्यानस्थ पार्श्वनाथ को सात सर्पफणों के छत्र के नीचे आसीन दिखाया गया है। मूलनायक के दोनों ओर चामरधारी धरणेन्द्र एवं पद्मावतो की आकृतियाँ उकेरी हैं। परिकर में सात तीर्थंकर मूर्तियाँ एवं अष्टप्रातिहार्य भी दिखाये गये हैं। सुपार्श्वनाथ-मस्तक
कक्ष ६ : ऋषभनाथ (क्र० ८६, १०वीं शती ई०) : जटमुकुट से शोभित ऋषभनाथ वृषभ-लांछन एवं गोमुख-चक्रेश्वरी की आकृतियों से युक्त हैं ।
महावीर (क्र० २४, ११वीं शती ई०) : यह मूर्ति पर्याप्त खण्डित है, किन्तु सिहलांछन के आधार पर तीर्थंकर की पहचान महावीर से की जा सकती हैं। इस मनोज्ञ मूर्ति में अष्टप्रातिहार्यों के अतिरिक्त चतुर्भुज यक्ष और यक्षी की आकृतियाँ भी दिखायी गयी हैं । यक्ष के आयुध स्पष्ट नहीं हैं, किन्तु यक्षी विशिष्ट लक्षणों वाली है। पांच सर्पफणों के छत्र से युक्त यक्षी के हाथों में फल देखा जा सकता है ।
ऋषभनाथ (क्र० ३, १०वीं शती ई०) : यह कायोत्सर्ग मूर्ति कला की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। मूलनायक की शरीर रचना सुन्दर, आनुपातिक और हल्की है । वृषभ-लांछन एवं कन्धों पर लटकती जटाओं के साथ ही चतुर्भुज यक्ष-यक्षी भी निरूपित है। यक्ष के तीन हाथों में फल, पुस्तक और धन का थैला है। गरुडवाहना चक्रेश्वरी पारम्परिक आयुधों से युक्त है । परिकर में २३ तीर्थकर आकृतियाँ भी बनी हैं। इनमें से दो आकृतियों की पहचान पाँच और सात सर्पफणों के छत्र के आधार पर सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ से की जा सकती है । सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ की आकृतियों के समीप दो चामरधारी सेवकों का अंकन अलंकरण एवं उनकी एक ओर झुकी हुई विशेष आकर्षक मुद्रा के कारण उल्लेखनीय है । तीर्थकर मूर्तियों में चामरधारी सेवकों का यह सुन्दरतम अंकन है।
कक्ष ७ : इस कक्ष में चतुर्भुजा देवियों को पांच मूर्तियां हैं जिनकी निश्चित पहचान सम्भव नहीं है १. गौरी या लक्ष्मी (क्र० ५१८, ११ वीं शती ई०) त्रिभंग में खड़ी देवी के ३ हाथों में से एक में अभयमुद्रा और दो में पद्म प्रदर्शित हैं। २. गौरी या लक्ष्मी (क्र० २००, ११ वों शती ई०) ललितासीन देवी के हाथों में अभयमुद्रा, पद्म, पद्म और जलपात्र हैं । ३. वजाकुशा (?) (क्र० २८८) ललितासीन देवी का वाहन मकर है और देवी के तीन हाथों में अभयमुद्रा, अंकुश और पद्म दिखाया गया है । मकरवाहन और पद्म के आधार पर देवी की पहचान यक्षी गान्धारी से भी की जा सकती है। ४. गौरी या लक्ष्मी (क्र० १८, ११वीं शती ई०) ललितासीन देवी के हाथों में अभयमुद्रा, पद्म, पश्च और वज्र प्रदर्शित हैं। ५. गौरी या लक्ष्मी
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