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साहू शान्ति प्रसाद जैन कला संग्रहालय, खजुराहो
बाहुबली (११वीं शती ई०) : बाहुबली मूर्ति (१' १०' x १' २") में केवल घुटनों के नीचे का भाग हो अवशिष्ट है। बाहुबली के शरीर से लिपटी हुई माधवी के दोनों छोर पावों में खड़ी विद्याधरियों के हाथों में दिखाए गए हैं। परिकर में सात तीर्थंकरों की आकृतियाँ भी बनी है। सिंहासन पर कायोत्सर्ग में खड़े बाहुबली के साथ यक्ष-यक्षी भी निरूपित है। बाहुबली के साथ यक्ष और यक्षी का अंकन एक दुर्लभ विशेषता है । यक्ष और यक्षी के रूप में गोमुख और चक्रेश्वरी आकारित हैं जो मूलतः ऋषभनाथ के यक्ष और यक्षी है। द्विभुज गोमुख के हाथों में फल एवं धन का थैला तथा चतुर्भुजा गरुडवाहना चक्रेश्वरी के तीन अवशिष्ट करों में वरदमुद्रा, चक्र और शंख हैं।
सम्भवनाथ (क्र० ३८, ११वीं शती ई०) : इस ध्यानस्थ मूर्ति (२' ८ x १' ५') में अश्व-लांछन, अष्टप्रातिहार्य एवं द्विभुज यक्ष-यक्षी का अंकन हुआ है।
कक्ष ४ : स्तम्भ भाग-इसके एक ओर अर्धचन्द्र-लांछन और दूसरी और स्वस्तिकलांछन वाली चन्द्रप्रभ और सुपार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं।
ऋषभनाथ (१०वीं शती ई०) : इस ध्यानस्थ मूर्ति (२' ७' x १' ११'') में जटामुकुट के रूप में ऋषभनाथ के केशों की बनावट विशेष उल्लेखनीय है। इस मूर्ति के परिकर में कई तोर्थंकर आकृतियाँ बनी हैं और दोनों ओर पाँच सर्पफणों के छत्र वाली सुपाश्वनाथ की दो कायोत्सर्ग मूर्तियाँ अवस्थित हैं। सुपार्श्वनाथ के कन्धों पर जटाओं का अंकन उल्लेखनीय है । मूलनायक के यक्ष-यक्षी चतुर्भुज गोमुख (अभयमुद्रा, परशु, पुस्तक एवं फल) एवं चक्रेश्वरी (गरुडवाहना तथा करों में अभयमुद्रा, गदा, चक्र एवं शंख) है ।
विमलनाथ (क्र० २८६, १०वीं शतो ई०) : इस ध्यानस्थ मूर्ति (२' १' x १' ३') में सिंहासन के ऊपर का आसन अत्यन्त अलंकृत है। सिंहासन पर वराह-लांछन एवं द्विभुज यक्ष और यक्षी उत्कीर्ण हैं। छोटे-छोटे घुमावदार छल्लों के रूप में प्रदर्शित मूलनायक की केश रचना अत्यन्त सुन्दर है। विशेषतः अलंकृत प्रभामण्डल एवं त्रिछत्र के अतिरिक परिकर में कई तीर्थकर आकृतियाँ भी बनी हैं।
शांतिनाथ (क्र० ३९, ११वीं शती ई०) : ध्यानमुद्रा में विराजमान शांतिनाथ के दाहिने पार्श्व में अज-लांछन से युक्त कुंथनाथ और बायीं ओर पद्म-लांछन वाली पद्मप्रभ की कायोत्सर्ग मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं (१' ११" x १' ७' )।
स्तम्भ भाग (क्र० ४५३ )-स्तंभ के दो ओर दो तीर्थंकरों की कायोत्सर्ग मूर्तियाँ उकेरी हैं। ____सुपार्श्वनाथ (दो उदाहरण : एक का क्रमांक ५११) : दोनों हो उदाहरणों में पांच सर्पफणों के छत्र वाले सुपार्श्वनाथ के केवल मस्तक अवशिष्ट हैं ।
कक्ष ५ : नेमिनाथ (क्र० १४, १० वीं शती ई०) : सिंहासन पर विराजमान नेमिनाथ के साथ शंख-लांछन और यक्ष-यक्षी के रूप में सर्वाल एवं सिंहवाहना अम्बिका की आकृतियाँ दिखायो गयी है (४५' x २८) । इस मूर्ति में आसन, प्रभाभण्डल एवं त्रिछत्र अत्यधिक अलंकृत हैं । अष्टप्रातिहार्यों के अतिरिक्त गज-व्याल-मकर अलंकरण एवं परिकर में १८ तीर्थकर मूर्तियाँ भी बनी हैं।
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