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खजुराहो का जैन पुरातत्व गंगा-यमुना
___ गुप्तकाल में मंदिरों की द्वारशाखाओं पर मकरवाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना का निरूपण प्रारम्भ हुआ और उसके बाद सभी क्षेत्रों में मंदिरों की द्वारशाखाओं पर इनका नियमित अंकन हुआ। खजुराहो एवं अन्य क्षेत्रों के जैन मंदिरों पर भी गंगा और यमुना की मूर्तियाँ निरूपित हुई। खजुराहो में घण्टई, आदिनाथ तथा पार्श्वनाथ मंदिरों के प्रवेशद्वारों पर इनकी मूर्तियां हैं। घण्टई मंदिर के उदाहरण में द्विभुज मकरवाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना की खड़ी आकृतियों के दोनों हाथ नष्ट हो चुके हैं। पार्श्वनाथ मंदिर में गंगा और यमुना की तीन-तीन आकृतियां हैं जो क्रमशः अर्धमण्डप, गर्भगृह और पश्चिमी देवकुलिका पर हैं । इनमें मकरवाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना विभिन्न आभूषणों से सज्जित एवं द्विभुज हैं। अर्धमण्डप के उदाहरणों में उनके दोनों हाथ खंडित हैं जबकि गर्भगृह के उदाहरण में एक अवशिष्ट भुजा नीचे लटकती हुई दिखाई गई है । पश्चिमी देवकुलिका के उदाहरण में केवल यमुना का एक हाथ सुरक्षित है जिसमें चक्राकार पद्म प्रदर्शित है । आदिनाथ मंदिर के उदाहरण में गंगा (बांयें) और यमुना (दाहिने) चतुर्भुजा हैं। यमुना के चारों हाथ खंडित हैं किन्तु गंगा के एक अवशिष्ट कर में पद्म प्रदर्शित है। इनके समीप ही मकर और कूर्म वाहनों की आकृतियाँ भी बनी हैं। अष्टवसु या गोमुख यक्ष (?)
आदिनाथ मंदिर के मंडोवर के दिक्पाल कोणों पर अष्टवसुओं या गोमुख यक्ष की आठ स्थानक मूर्तियाँ बनी हैं । इन आकृतियों के गोमुख होने के कारण इन्हें ऋषभनाथ के गोमुख यक्ष का अंकन भी माना जा सकता है। खजुराहो में १०वीं शती ई० के बाद के ब्राह्मण मंदिरों पर भी इसी प्रकार आठ कोणों पर वृषमुख अष्टवसुओं का अंकन हुआ है जिसके उदाहरण चतुर्भुज एवं दूलादेव मंदिरों तथा वराह मंदिर के विशाल वराह प्रतिमा के शरीर पर देखे जा सकते हैं । ब्राह्मण मंदिरों की मूर्तियों में चतुर्भुज अवष्टसुओं को आदिनाथ मंदिर के समान ही त्रिभंग में खड़ा, वृषमुख और वृषभवाहन वाला दिखाया गया है तथा उनके करों में वरदमुद्रा (या वरदाक्ष), त्रिशूल (या स क या परशु), पुस्तक-पद्म और जलपात्र हैं। आदिनाथ मंदिर की वृषमुख चतुर्भुज मूर्तियाँ त्रिभंग में वृषभवाहन के साथ निरूपित हैं। उनके हाथों में वरदमुद्रा, चक्राकार सनाल पद्म (या परशु), चक्राकार सनाल पम
और जलपात्र प्रदर्शित हैं। ये आकृतियाँ तीन हारों, उपवीत, लम्बी माला, मेखला तथा धोती आदि से सुशोभित हैं । दिगम्बर ग्रंथों में ऋषभनाथ के गोमुख यक्ष का वाहन वृषभ बताया गया है, और उनके हाथों में परशु, फल, अक्षमाला और वरदमुद्रा प्रदर्शित हैं।
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