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अध्यायसाहू शान्ति प्रसाद जैन कला संग्रहालय, खजुराहो
[सा० शां० ० क० सं०] जैन मन्दिर समूह एवं धर्मशाला के प्रवेश द्वार के समीप ही कुछ समय पूर्व साहू शान्ति प्रसाद जैन कला संग्रहालय का निर्माण हुआ है। संग्रहालय में खजुराहो से मिली १०वीं से १३वीं शती ई० के मध्य की शताधिक जैन मूर्तियाँ हैं । संग्रहालय की विविधतापूर्ण जैन मूर्तियों में विभिन्न तीर्थंकरों (ऋषभनाथ, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दन, सुपार्श्वनाथ, विमलनाथ, शांतिनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और महावीर), यक्ष एवं यक्षियों (कुबेर यक्ष एवं चक्रेश्वरी, अम्बिका, पद्मावती यक्षी) तथा बाहुबली, क्षेत्रपाल, दिक्पाल एवं जैन आचार्यों आदि की मूर्तियाँ हैं । इन मूर्तियों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है ।
संग्रहालय का प्रवेश-द्वार ११वीं शती ई० के प्राचीन जैन मन्दिर के प्रवेशद्वार से अलंकृत है। प्रवेश-द्वार के दोनों ओर दो विशाल मकरमुख देखे जा सकते हैं। प्राचीन मन्दिर के प्रवेश-द्वार के ललाटबिम्ब में चतुर्भुजा चक्रेश्वरी (गरुडवाहना) और उत्तरंग के दाहिने छोर पर अम्बिका (आम्रलुम्बि, पद्म, पुस्तक एवं बालक से युक्त) और बायें छोर पर लक्ष्मी (तीन हाथों में अभयमुद्रा, पद्म और पद्म) की आकृतियाँ निरूपित है। उत्तरंग पर ही गोमुख यक्ष सहित नवग्रहों, मालाधारी विद्याधरों, गन्धों तथा द्वारशाखाओं पर आलिंगनबद्ध युगलों एवं गंगा और यमुना की अत्यन्त अलंकृत और भव्य मूर्तियाँ उकेरी हैं।
प्रवेश-द्वार के भीतरी भाग में भी किसी प्राचीन जैन मन्दिर का उत्तरंग (११वीं शतीई०) लगाया गया है । उत्तरंग के मध्य में सुपार्श्वनाथ की ध्यानस्थ तथा दोनों छोरों पर पद्मावती एवं सिंहवाहना अम्बिका की आकृतियाँ बनी है। उत्तरंग पर ६ तीर्थंकरों तथा नवग्रहों की द्विभुज और स्थानक आकृतियाँ भी देखी जा सकती हैं।
संग्रहालय के प्रवेश द्वार के दोनों ओर (भीतर की ओर) क्षेत्रपाल की ११वीं शती ई० को दो मूर्तियाँ हैं । दाहिनी ओर की मूर्ति (क्र० २३७, २'६" x १' ५") त्रिभंग में अष्टभुज क्षेत्रपाल की है । भयंकर दर्शन, विस्फारित नेत्रों तथा बिखरे केश वाले क्षेत्रपाल के एक हाथ में गदा का कुछ भाग शेष है और एक हाथ में शृंखला स्पष्ट है जिससे उसका वाहन बँधा हुआ है। यह वाहन सम्भवतः सिंह है । मूर्ति के परिकर में तीन ध्यानस्थ जिन आकृतियाँ तथा चामरधर एवं मालाधर दिखाए गए हैं। क्षेत्रपाल की दूसरी मूर्ति (२०२"x १' ९) दस हाथों वाली और त्रिभंग में है और उनका वाहन सम्भवतः सिंह है। मूर्ति के केवल दो हाथ सुरक्षित हैं जिनमें से एक में गदा है और दूसरा तर्जनीमुद्रा में है । उपर्युक्त मूर्ति की भयंकरता इस मूर्ति में नहीं दिखाई देती हैं। इस मूर्ति में क्षेत्रपाल को सौम्य एवं शांत भाव वाला तथा मालाधारी सेविकाओं, चामरधरों एवं उपासकों से वेष्ठित दिखाया गया है ।
कक्ष १ : ऋषभनाथ (क्र० १६ ) : इस विशाल मूर्ति में ऋषभनाथ को चन्द्रशिला के ऊपर ध्यानस्थ दिखाया गया है । मूलनायक का मुख भरा हुआ और किञ्चित् वृत्ताकार
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