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________________ महमूद गजनवी के साथ आये इतिहासकार अबूरेहन (जो महमूद द्वारा कालिन्जर पर किये गये आक्रमण के समय (१०२२ ई०) उसके साथ भारत आया था) द्वारा किया गया है। उसने उसका उल्लेख जाजाहुति (जैजाकभुक्ति) की राजधानी के रूप में किया है ।' जैजाकभुक्ति के जिझौति, जझौति, जझोति,जजाहुति,जजाहोति, जेजाहुति, जेजाभुक्ति, जेजाकभुक्ति, जेजाभुतिक, चिः चि तो या चि-कि-तो आदि अनेक नाम मिलते हैं ।२ अबूरेहन के उपरान्त उसका उल्लेख प्रसिद्ध यात्री इब्न-बतूता द्वारा किया गया है। इब्नबतूता १३३५ ई० में खजुराहो आया था। उसने खजुराहो का नाम "कजुरा" लिखा है । साथ ही उसने खजुराहो के उस विशाल जलाशय का भी वर्णन किया है जो एक मील लम्बा था और जिसके चारों ओर सुन्दर देवालयों की लम्बी श्रृंखला विद्यमान थी। खजुराहो का पतन १३वीं शताब्दी के प्रारम्भ में (१२०२ ई०) उस समय से होने लगता है, जब कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा कालपी और कालिन्जर तथा महोबा पर कब्जा कर लिया जाता है और चन्देल शासक सुरक्षा की दृष्टि से स्थाई तौर पर अजयगढ़ के किले-जयदुर्ग में जाकर रहने लगते हैं । खजुराहो का महत्त्व उस समय से क्रमशः घटने तो लगता है, पर फिर भी कुछ समय तक बना रहता है, जैसा कि इब्न-बतूता (१३३५ ई०) के यात्रा वृत्तान्त से ज्ञात होता है । उसने अपने यात्रा वृत्तान्त में लम्बे तथा चिकटे जटाओं वाले पीतवर्ण के उन योगियों का उल्लेख किया है जो अनेक व सतत उपवासों के कारण पीले पड़ गये थे और जिनके पास अनेक मुसलमान भी जन्तर-मन्तर, जादू-टोना सीखने आया करते थे । परन्तु अकबर के समय तक खजुराहो का उतना महत्त्व भी शेष नहीं रहा और वह विस्मृति के कराल गाल में जाकर विलुप्त-प्राय सा हो गया। इस तथ्य का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आईने-अकबरी में खजुराहो का कहीं किंचित्मात्र उल्लेख नहीं है। आगे चलकर उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में तो यह भाग वनाच्छादित हो गया था। १८१८ ई० में जब श्री फ्रैंकलिन ने इस भूभाग का सर्वेक्षण किया तो उसने अपने स्मृति पत्र (Memoirs) में इसका उल्लेख तक नहीं किया और नक्शे में "कजराओ" ( Kajrow ) के बाद "Ruins" शब्द लिखकर चर्चा समाप्त कर दी। उसका “Ruins" शब्द भली प्रकार न पढ़ा जाने के कारण उसके आधार पर तैयार इण्डियन एटलस की सीट नम्बर ७० में भूलावशात् "Mines" शब्द लिख दिया गया। कई शताब्दियों के सुदीर्घ विस्मरण के पश्चात् उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य उस समय से खजुराहो का पुनः स्मरण किया जाने लगा, जब श्री ए० कनिघम ने सर्नेक्षण कर वहाँ के पुरातत्त्वीय वैभव पर प्रकाश डाला । भारतवासियों को इसके लिये उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहिये। 1. Archaeological Survey of India Report by Cunningham, Vol. II. 2. The Early Rulers of Khajurā ho by Sisir Kumar Mitra, P. 4. 3. Archaeological Survey of India Report by Cunningham, Vol II. __pp. 412-27. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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