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प्रकाशकीय साहू शान्तिप्रसाद जैन कला संग्रहालय तथा उसको निर्माता श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र खजुराहो प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष की हैसियत से डॉ० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी द्वारा प्रणीत "खजुराहो का जैन पुरातत्त्व" प्रकाशित कर उसे पाठकों को समर्पित करते हुए मुझे विशेष हर्ष व उल्लास का अनुभव हो रहा है ।
भारत वर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ-क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष प्रसिद्ध समाज-सेवी स्व० साहू शान्ति प्रसाद जी दिसंबर १९७० व फरवरी १९७७ को खजुराहो पधारे थे। उनकी खजुराहो की प्रथम यात्रा के दौरान ही उनसे यह अनुरोध किया गया था कि एक तो खजुराहो के जैन पुरावशेषों की रक्षा एवं व्यवस्था हेतु वे एक उपयुक्त संग्रहालय का निर्माण श्री दिगम्बर जैन अतिशय-क्षेत्र खजुराहो (जैन मंदिर-समूह खजुराहो) के निकट करा देवें तथा दूसरे, किसी अधिकारी विद्वान द्वारा यहाँ के जैन पुरातत्त्व का विशद अध्ययन कराकर उसके प्रकाशन की व्यवस्था करें। उनके न रहने के बावजूद उनके ज्येष्ठ भ्राता श्रद्धेय साहू श्रेयांश प्रसाद जी (अध्यक्ष भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, बम्बई) व उनके पुत्र साहू अशोक कुमार जी तथा समस्त साहू परिवार एवं उदारमना जैन समाज के सहयोग एवं प्रेरणा से "साहू शान्तिप्रसाद जैन कला संग्रहालय' के निर्माण के साथ-साथ "खजुराहो का जैन पुरातत्त्व'' प्रकाशित कर उक्त दोनों विचारों को मूत्तं रूप देते समय हमें व हमारे सहयोगियों को अपार प्रसन्नता का अनुभव होना सहज स्वाभाविक है ।
भारतीय इतिहास के उत्थान-पतन, उसके उतार-चढ़ावों को जानने के लिये, खजुराहो एक उपयुक्त स्थान है। खजुराहो ने यदि काफी सुदिन देखे हैं, तो दुर्दिन भी कम नहीं देखे। वह जुझौतियों, प्रतिहारों एवं चन्देलों के उत्थान-पतन का साक्षी रहा है । सर्वप्रमथ, इसका उल्लेख प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग द्वारा किया गया है, जो ६४१ ई० के लगभग यहाँ आया था। इस प्रदेश का नाम उसने "चिः चि तो” ( जझोति ) बतलाया है। उसके अनुसार इस प्रदेश की राजधानी महेश्वरपुर (ग्वालियर ) के दक्षिण में ९०० लि. से अधिक दूर व उज्जैन के उत्तर-पूर्व में, उज्जैन से १००० लि. (या १६७ मील) दूर थी (जो वास्तविक दूरी का लगभग आधा है)। यह राजधानी (जिसका नामोल्लेख उसने नहीं किया १५-१६ लि. ( या २॥ मील से अधिक ) वृत्ताकार थी तथा इसके अधिकांश निवासी मूर्ति पूजक थे। उसके अनुसार, उस काल में, यहाँ कई दर्जन मठ थे, परन्तु उनमें रहने वाले साधु संख्या में बहुत कम थे। उस समय खजुराहो में एक हजार ब्राह्मण थे जो बारह मन्दिरों से सम्बद्ध थे। राजा स्वयं ब्राह्मण था, परन्तु बौद्धधर्म में उसकी दृढ़ आस्था थी। सारा प्रदेश अपनी भूमि की उर्वरा-शक्ति के लिये विख्यात था तथा भारत के सभी भागों से अनेक विद्वान यहाँ बहुधा आया-जाया करते थे। खजुराहो का दूसरा महत्वपूर्ण उल्लेख
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